Saturday, June 26, 2010

तेरे अधरों पर खिली रहूँ

चाँद रख सकूं दामन में
मुझमें इतनी ताब कहाँ
मान दोस्त का रखूँ संभाल
बस इतनी सी आब यहाँ .

देखकर सागर जितनी प्रीत
मैं होती हूँ कुछ भयभीत
न ऐसा मेरा भाग्य सुदर्शन
कर दूं मैं खुद को अर्पण .

हंसी शाश्वत का सपना
ख़ुशी तुम्हारी देख हंसूं
मलिन रूप यह कभी न हो
तेरे अधरों पर खिली रहूँ .

बहुत ही प्यारे दोस्त हो तुम
तुम पर है मुझे गुमान
न करना मर्दन मेरा मान
कर सकूं मैं खुद पर अभिमान .

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