Thursday, July 28, 2011

रिमझिम













पावस की बूँदें 
तपन को बढाती
बरस बरस के
लोचन भर जाती 


कोकिल के पंख भीगे 
कैसे भला उड़ पाती 
उलझे हैं मन के धागे 
कैसे उन्हें बुन पाती 

क्षितिज तक निहारे 
घन भर भर छाये 
किसको  वह पुकारे 
जो इन्हें उड़ा ले जाए 

इन कोमल  बूंदों ने 
मन को हुल्साया 
टप टप के गान ने 
स्पंदन भी ठहराया

चली जाओगी बदरी 
बरस के तुम निकल 
आंसुओं की गठरी 
लिए बिरहन रहे विकल 

जग सारा जुडाया  
मुझमें क्यों दाह भरी
पुरवा ने द्वेष उड़ाया
मुझमें है आह भरी 

रिमझिम सी बूँदें 
दरिया उफान लायेंगी 
नाम तुम्हारा गूंजें
स्मृति बहा न पाएंगी . 

Saturday, July 23, 2011

भीगे नैना




बरखा रानी 
मन भाई है
इन्द्रधनुष को न्योता
देकर आई है  

तुम ही हो 
रंगों के सौदागर
भर देना जीवन 
रंगीन उजागर

बरस के मेघा 
लौट न जाना 
करना शीतल 
यहीं बस जाना 

नहा लिए 
तरू और तरूवर 
धोया मन 
मेरा भी प्रियवर 

रिमझिम बूँदें 
खिली खिली हैं
लगती राघव से 
गले मिली हैं 

भीगा मौसम 
भीगे  नैना 
दूर जा बसी 
छोड़ के मैना 

पिहू पिहू 
करे पपीहा 
पुकार पुकार 
थके न जिव्हा .  

Monday, July 18, 2011

एक पत्थर









पाषाण नगरी में 
हम हो गए 
पत्थर 
तो क्या होगा 

गढ़ उठेगी 
एक मूरत 
बोलती सी 
तो क्या होगा 

बज उठेगा 
उसमें गीत 
कराहता सा 
तो क्या होगा 

उन आँखों में 
न भरना प्रीत 
बहे आंसुओं सा
तो क्या होगा 

उन हाथों में 
न देना मीत 
रहा खाली सा 
तो क्या होगा 

उन होठों में 
न गढ़ना कमल
चाहे खिला सा 
तो क्या होगा 

एक पत्थर में 
न फूंकना प्राण
उठे जीवन सा 
तो क्या होगा  

Sunday, July 10, 2011

समाधिस्थ




















सुख न हंसाये 
मुझको जी भर 
दुःख न रुलाये 
उदासी ला कर

बुद्ध मैं नहीं
इतिहास नहीं मेरा
मानव हूँ यही 
अधिकार नहीं मेरा 

अति साधारण 
जीवन मेरा 
कोई कारण 
नहीं साथी मेरा 

चुनौती भरी
कठिन है  राह
रह पाऊं खरी 
यही मेरी चाह 

मुझमें जो छिपा 
न जाने अभी  
रहता है ढका
न उघाढूँ कभी

स्वीकार  है 
सभी के बोल
खट्टे - मीठे हैं 
सबका है मोल 

मन में भरा 
सबसे अनुराग 
हर्ष से जरा 
घटता विषाद .

Wednesday, July 6, 2011

कैंची
















तेज़ बहुत है 
पर काटती नहीं
बल्कि गढ़ती है 
नया कुछ कहीं 

काट दे  अवांछित 
बीच में जो आये 
आकार दे  अपेक्षित  
कि मन को भाए  

इस्पात है भरा 
हथियार नहीं है  
सोने सा है खरा
दुर्लभ नहीं है 

प्रेम को न काटे 
दोस्ती की पैरहन
बस भाईचारा बांटे
सदभावना गहन 

अनगढ़ को सूरत
बुराई  को दूर करे 
बनाये ऐसी मूरत 
अच्छाई का दंभ भरे 

धार है बहुत 
रखती है पैनापन 
दोस्त हो या दुश्मन 
कैसा है नयापन 

कैंची है अनूठी 
पर प्रीत न काटे 
लगती नहीं झूठी 
बैर भी न बांटे