मुझको जी भर
दुःख न रुलाये
उदासी ला कर
बुद्ध मैं नहीं
इतिहास नहीं मेरा
मानव हूँ यही
बुद्ध मैं नहीं
इतिहास नहीं मेरा
मानव हूँ यही
अधिकार नहीं मेरा
अति साधारण
जीवन मेरा
कोई कारण
नहीं साथी मेरा
चुनौती भरी
कठिन है राह
रह पाऊं खरी
यही मेरी चाह
मुझमें जो छिपा
न जाने अभी
रहता है ढका
न उघाढूँ कभी
स्वीकार है
सभी के बोल
खट्टे - मीठे हैं
सबका है मोल
मन में भरा
सबसे अनुराग
हर्ष से जरा
घटता विषाद .
मन में भरा
ReplyDeleteसबसे अनुराग
हर्ष से जरा
घटता विषाद .
Bahut khoob!
खूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteस्वीकार है
ReplyDeleteसभी के बोल
खट्टे - मीठे हैं
सबका है मोल
.......wo to hai
बुद्ध मैं नहीं
ReplyDeleteइतिहास नहीं मेरा
मानव हूँ यही
अधिकार नहीं मेरा
wow bhaut khub
हर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।
ReplyDeleteअस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
ReplyDeleteआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
आज आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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मन में भरा
ReplyDeleteसबसे अनुराग
हर्ष से जरा
घटता विषाद .
manbhavan kriti.
shubhkamnayen
यही सबका लक्ष्य हो, हर्ष विषाद को ढक ले।
ReplyDeleteबहुत ही खूबी से मन की विचारो को आपने अपने शब्दों का रूप दिया...........बहुत खूब
ReplyDeleteखूबसूरत शब्दों से सजी हुई सुन्दर रचना!
ReplyDeleteएक संवेदनशील कविता...
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