Sunday, July 10, 2011

समाधिस्थ




















सुख न हंसाये 
मुझको जी भर 
दुःख न रुलाये 
उदासी ला कर

बुद्ध मैं नहीं
इतिहास नहीं मेरा
मानव हूँ यही 
अधिकार नहीं मेरा 

अति साधारण 
जीवन मेरा 
कोई कारण 
नहीं साथी मेरा 

चुनौती भरी
कठिन है  राह
रह पाऊं खरी 
यही मेरी चाह 

मुझमें जो छिपा 
न जाने अभी  
रहता है ढका
न उघाढूँ कभी

स्वीकार  है 
सभी के बोल
खट्टे - मीठे हैं 
सबका है मोल 

मन में भरा 
सबसे अनुराग 
हर्ष से जरा 
घटता विषाद .

12 comments:

  1. मन में भरा
    सबसे अनुराग
    हर्ष से जरा
    घटता विषाद .
    Bahut khoob!

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  2. स्वीकार है
    सभी के बोल
    खट्टे - मीठे हैं
    सबका है मोल
    .......wo to hai

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  3. बुद्ध मैं नहीं
    इतिहास नहीं मेरा
    मानव हूँ यही
    अधिकार नहीं मेरा

    wow bhaut khub

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  4. हर शब्‍द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्‍यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।

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  5.  अस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,

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  6. मन में भरा
    सबसे अनुराग
    हर्ष से जरा
    घटता विषाद .

    manbhavan kriti.

    shubhkamnayen

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  7. यही सबका लक्ष्य हो, हर्ष विषाद को ढक ले।

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  8. बहुत ही खूबी से मन की विचारो को आपने अपने शब्दों का रूप दिया...........बहुत खूब

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  9. खूबसूरत शब्दों से सजी हुई सुन्दर रचना!

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  10. एक संवेदनशील कविता...

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