सफलता के जुगनू
हंसकर टिमटिमाते हैं
कुछ पाने की खुशबू
नैन झिलमिलाते हैं
अपनों की ख़ुशी
फाग बन जाती है
होंठो की निर्मल हंसी
दीपमाला जलाती है
लगता है सारा
संसार जैसे झूमता
हर ओर लगता
वसंत ऐसे घूमता
किसने है देखा
नींव का पत्थर
जिस पर खड़ा
आशाओं का मंजर
अदृश्य रहकर भी
बहुत मुस्कुराता
हिलने न दूंगा
वादा भी दोहराता
रहना डटे तुम
तूफ़ान में भी
हँसना भी तुम
बियाबान में भी
स्वयं की आहुति
किसी का उजास
प्रखर होती प्रगति
पहुंचाती प्रकाश .
अपनों की ख़ुशी
ReplyDeleteफाग बन जाती है
होंठो की निर्मल हंसी
दीपमाला जलाती है
बहुत सुंदर प्रस्तुति ....
किसने है देखा
ReplyDeleteनींव का पत्थर
जिस पर खड़ा
आशाओं का मंजर
achhi abhivyakti
कुछ नया लिख मेरे नन्हे दोस्त ! कितनी बार कितने रचनाकारों ने बोला है ये सब. कंगूरे ना होते तो क्या कोई सोचता कि यहाँ कहीं कोई नींव भी है?
ReplyDeleteहो सकता है धरती के भीतर और भी दबी नीवें हो .नीवों की सार्थकता उस पर खड़ी इमारत,भवन,महल से है.नीव को अहंकार नही होना चाहिए कि वो ना होती तो इस भवन का भविष्य क्या होता? हा हा हा उसकी महानता तो खुद को अदृश्य करके दर्शनीय कुछ बनाना है.है ना?
स्वयं की आहुति
ReplyDeleteकिसी का उजास
प्रखर होती प्रगति
पहुंचाती प्रकाश .
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
स्वयं की आहुति
ReplyDeleteकिसी का उजास
प्रखर होती प्रगति
पहुंचाती प्रकाश .
bhaut acha likha hai madam je
किसने है देखा
ReplyDeleteनींव का पत्थर
जिस पर खड़ा
आशाओं का मंजर
-बहुत उम्दा ख्याल!!
आज तो टिप्पणी मे यही कहूँगा कि बहुत उम्दा रचना है यह!
ReplyDeleteएक मिसरा यह भी देख लें!
दर्देदिल ग़ज़ल के मिसरों में उभर आया है
खुश्क आँखों में समन्दर सा उतर आया है
सुन्दर भाव उड़ेलते शब्द।
ReplyDeleteसुंदर भावों से जन्मी रचना ...
ReplyDeleteकिसी का उजास
ReplyDeleteप्रखर होती प्रगति
पहुंचाती प्रकाश .
सुन्दर शब्दों के साथ भावों का बेहतरीन संयोजन ...।
कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
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