Tuesday, May 31, 2011

तुम्हारे जाने के बाद











हवा
नही रुकेगी

बहेगी अनवरत
लेकिन नही होगी उसमें
खुश्बू तुम्हारी
तुम्हारे जाने के बाद...

धूप का
नहीं  बदलेगा रंग 

न ही ताप
लेकिन गीली नही होगी
धूप
तुम्हारे जाने के बाद


एक गौरैया 
आएगी मेरी खिड़की पर 
सुनाएगी गीत 
पर उसमें नहीं होगी 
मिठास 
तुम्हारे जाने के बाद 

आएगी बरखा 
घूँघट उठा 
बरसेगी छमछम 
फुहारों से अपनी 
भिगोएगी तन 
पर नहीं भीगेगा 
मन 
तुम्हारे जाने के बाद 

बांह पसारे 
पसरेगा वसंत
झूमेंगें भँवरे 
गायेंगी तितलियाँ 
खिलेंगे सुमन 
पर नहीं खिलेगी मेरी 
आशाओं की कली
तुम्हारे जाने के बाद 

थके क़दमों से
आएगा चंदा 
बिखराएगा चंदनिया
पर  नहीं भर पायेगा 
उजास 
मेरे आँगन 
तुम्हारे जाने के बाद .

Sunday, May 29, 2011

प्रिय आयें लेकर अवकाश

















शब्द पिरोये बिना भाव के 
कहाँ से भर दूं प्राण 
बिना चाँद और तारों के 
अम्बर भी है निष्प्राण 

मन के  आँगन उतरी 

गौरैया भी है निराश 
छलकी जाए नैन गगरी 
कैसा आया  संत्रास 


अन्दर बाहर फैला है 
स्याह अँधेरा पास 
लग रहा है इन दिनों 
अमावस्या का है वास 


जुगनू ने भी है ठानी 
भर दूं पथ प्रकाश 
मन की किसने है जानी 
जीवन  में भरी आस
  

सुन लो सूरज और चांदनी 
तुम बैठे हो आकाश 
तुमको है एक डोर बांधनी
प्रिय आयें लेकर अवकाश

Wednesday, May 25, 2011

छिपा मीत





तुम्हारी आँखों सा  
बसा जो समंदर है
मेरे भावों की नदी सा  
बहता कलकल है

तुम्हारे आँचल में 
बसा जो आकाश है 
मेरे सपनों के सितारों से
झरता झिलमिल है 

तुम्हारे हाथों में 
बनी  जो लकीरें हैं 
मेरे भाग्य की रेखाओं से 
जाकर मिलती  हैं 

तुम्हारे अधरों में 
छिपा जो गीत है 
मेरे ह्रदय के तारों से 
उपजा संगीत है  

तुम्हारे पाँवों में 
बंधी जो पायल है 
सुनने को रुनझुन 
मन पागल है 

तुम्हारी अलकों में 
उलझी जो लट है 
सुलझाने को व्याकुल 
उलझने की रट है 


तुम्हारे  शब्दों में
छिपा जो मीत है 
कोई और तो नहीं 
तुम्हारा मनमीत है  .

Sunday, May 15, 2011

तुम जो नहीं हो पास














एक खालीपन 
पसर गया है 
मन के भीतर 
बाहर भी
तुम जो नहीं हो पास 

उदासी के घन 
घिर आये हैं 
अँधेरा फैला है 
चारों ओर 
सूरज तुम 
छिप गए हो उसकी ओट 

वैराग्य सा 
समाता जा रहा है
आत्मा में 
विरक्ति आसीन 
हो रही है
वसंत तुम 
कब आओगे लेकर आसक्ति 

मोह सा 
बढ़ता जा रहा है 
जीवन से 
इन्द्रियां सभी 
अनियंत्रित हो रही हैं 
विवेक तुम 
कहाँ हो चुराकर चेतना.

Wednesday, May 11, 2011

हवा हूँ मैं




हवा हूँ मैं 
महसूस कर सकते हो 
प्राण वायु हूँ
स्वयं में भर सकते हो 

अस्तित्व दिखता नहीं 
मौजूद हूँ मैं 
आकार कोई नहीं 
आसपास हूँ मैं

चलती हूँ 
मन की गति से 
रूकती हूँ 
दुःख की अति से 

दिशाहीन हूँ 
सब ओर बहूँ 
लक्ष्यहीन हूँ 
बहती ही रहूँ 

कोई अपना  हो 
जो रोके मुझको 
मेरा सपना  हो 
जो टोके मुझको

किसी को लगूं 
शीतल  बयार
किसी को ठगूं
महकता हार

उनके कानों में 
कुछ कह जाऊं 
प्रिय के बालों में 
पुष्प सजाऊँ 

तेज चलूँ 
आँचल ढलकाऊं
धीमे बह 
चूनर उडाऊं   

Wednesday, May 4, 2011

पुकार




दो फूल 
आस पास थे 
लाल रंग उनका 
खिल रहा था 

एक  भंवरा  
आस पास था 
रंग सुर्ख चटक 
लुभा रहा था 

एक तितली 
उड़ कर आई 
खिला हुआ सुमन 
बुला रहा था 

पुष्प के माथे 
झिलमिल करता 
ओस का मोती 
सजा रहा था 

खिली थी 
और भी कलियाँ 
पर यह फूल 
मुस्कुरा रहा था 

कहते थे 
उसके पराग 
कब  आओगे 
रास्ता देख रहा था 

उसकी पुकार 
तोड़ लेना मुझे 
देना उनको 
जो मन के करीब था .

Monday, May 2, 2011

तुम हो आस



सुन्दरता कहती 
तुम सुन्दर 
सृजना रहती  
तुम्हारे अन्दर 

कोमलता कहती 
तुम कोमल 
करुणा बहती 
तुम्हारे अन्दर 

लालिमा कहती 
तुम हो लाल 
लज्जा भरती 
तुम्हारे गाल 

पवित्रता कहती 
तुम पावन 
पूजन  करती 
तुम्हारे आँगन 

सरलता कहती 
तुम बहुत सरल 
सबसे मिलती 
होकर के विरल 

सहजता कहती 
तुम सहज 
नहीं होती 
कभी असहज 

बड़प्पन कहता 
तुम हो बड़ी 
हर स्थिति में 
रहती हो खड़ी 

आशा कहती 
तुम हो आस 
निराशा तकती 
नहीं आती पास .