Wednesday, May 11, 2011

हवा हूँ मैं




हवा हूँ मैं 
महसूस कर सकते हो 
प्राण वायु हूँ
स्वयं में भर सकते हो 

अस्तित्व दिखता नहीं 
मौजूद हूँ मैं 
आकार कोई नहीं 
आसपास हूँ मैं

चलती हूँ 
मन की गति से 
रूकती हूँ 
दुःख की अति से 

दिशाहीन हूँ 
सब ओर बहूँ 
लक्ष्यहीन हूँ 
बहती ही रहूँ 

कोई अपना  हो 
जो रोके मुझको 
मेरा सपना  हो 
जो टोके मुझको

किसी को लगूं 
शीतल  बयार
किसी को ठगूं
महकता हार

उनके कानों में 
कुछ कह जाऊं 
प्रिय के बालों में 
पुष्प सजाऊँ 

तेज चलूँ 
आँचल ढलकाऊं
धीमे बह 
चूनर उडाऊं   

12 comments:

  1. दिशाहीन हूँ
    सब ओर बहूँ
    लक्ष्यहीन हूँ
    बहती ही रहूँ

    kya baat hai very nice

    ReplyDelete
  2. एक दम नई सोच के साथ इस कविता की भवना से एकात्मकता मह्सूस हुई। एक अच्छी कविता के लिए बधाई।

    ReplyDelete
  3. दिशाहीन हूँ
    सब ओर बहूँ
    लक्ष्यहीन हूँ
    बहती ही रहूँ ... दिशाहीन नहीं , सर्वत्र व्याप्त ...लक्ष्यहीन नहीं , पूरी सृष्टि का आधार

    ReplyDelete
  4. अस्तित्व दिखता नहीं
    मौजूद हूँ मैं
    आकार कोई नहीं
    आसपास हूँ मैं

    चलती हूँ
    मन की गति से
    रूकती हूँ
    दुःख की अति से
    Behad sundar panktiyaan!

    ReplyDelete
  5. मनोभावों का सुन्दर विश्लेषण!
    प्रभावशाली रचना!

    ReplyDelete
  6. hawa hoon hawa main
    anokhi hawa hoon
    badi babli hoon
    badi mastmaula...
    aisa hi kuchh padha tha bachpan me:)
    yaad aa gaya wo kavita:!

    ReplyDelete
  7. अस्तित्व दिखता नहीं
    मौजूद हूँ मैं
    आकार कोई नहीं
    आसपास हूँ मैं
    सुन्दर अभिव्यक्ति , शुभकामनायें

    ReplyDelete
  8. बहुत अच्छी लगी आपकी यह रचना..

    ReplyDelete
  9. यह प्रवाह और उन्मुक्तता। बेहतरीन कविता।

    ReplyDelete
  10. हवा तो हवा है एकदम उन्मुक्त और पागल. अच्छे भाव समेटे अच्छी कविता.

    ReplyDelete
  11. दिशाहीन हूँ
    सब ओर बहूँ
    लक्ष्यहीन हूँ
    बहती ही रहूँ

    Sach dishahin hona bhi kabhi achha hota hai kisi or beh jao, disha banao aur naya lakshya banao. achha laga padhna aapko.

    shubhkamnayen

    ReplyDelete