हवा हूँ मैं
महसूस कर सकते हो
प्राण वायु हूँ
स्वयं में भर सकते हो
अस्तित्व दिखता नहीं
मौजूद हूँ मैं
आकार कोई नहीं
आसपास हूँ मैं
चलती हूँ
मन की गति से
रूकती हूँ
दुःख की अति से
दिशाहीन हूँ
सब ओर बहूँ
लक्ष्यहीन हूँ
बहती ही रहूँ
कोई अपना हो
जो रोके मुझको
मेरा सपना हो
जो टोके मुझको
किसी को लगूं
शीतल बयार
किसी को ठगूं
महकता हार
उनके कानों में
कुछ कह जाऊं
प्रिय के बालों में
पुष्प सजाऊँ
तेज चलूँ
आँचल ढलकाऊं
धीमे बह
चूनर उडाऊं
दिशाहीन हूँ
ReplyDeleteसब ओर बहूँ
लक्ष्यहीन हूँ
बहती ही रहूँ
kya baat hai very nice
एक दम नई सोच के साथ इस कविता की भवना से एकात्मकता मह्सूस हुई। एक अच्छी कविता के लिए बधाई।
ReplyDeleteदिशाहीन हूँ
ReplyDeleteसब ओर बहूँ
लक्ष्यहीन हूँ
बहती ही रहूँ ... दिशाहीन नहीं , सर्वत्र व्याप्त ...लक्ष्यहीन नहीं , पूरी सृष्टि का आधार
badhiya lagi kavita...
ReplyDeleteअस्तित्व दिखता नहीं
ReplyDeleteमौजूद हूँ मैं
आकार कोई नहीं
आसपास हूँ मैं
चलती हूँ
मन की गति से
रूकती हूँ
दुःख की अति से
Behad sundar panktiyaan!
मनोभावों का सुन्दर विश्लेषण!
ReplyDeleteप्रभावशाली रचना!
hawa hoon hawa main
ReplyDeleteanokhi hawa hoon
badi babli hoon
badi mastmaula...
aisa hi kuchh padha tha bachpan me:)
yaad aa gaya wo kavita:!
अस्तित्व दिखता नहीं
ReplyDeleteमौजूद हूँ मैं
आकार कोई नहीं
आसपास हूँ मैं
सुन्दर अभिव्यक्ति , शुभकामनायें
बहुत अच्छी लगी आपकी यह रचना..
ReplyDeleteयह प्रवाह और उन्मुक्तता। बेहतरीन कविता।
ReplyDeleteहवा तो हवा है एकदम उन्मुक्त और पागल. अच्छे भाव समेटे अच्छी कविता.
ReplyDeleteदिशाहीन हूँ
ReplyDeleteसब ओर बहूँ
लक्ष्यहीन हूँ
बहती ही रहूँ
Sach dishahin hona bhi kabhi achha hota hai kisi or beh jao, disha banao aur naya lakshya banao. achha laga padhna aapko.
shubhkamnayen