Monday, May 2, 2011

तुम हो आस



सुन्दरता कहती 
तुम सुन्दर 
सृजना रहती  
तुम्हारे अन्दर 

कोमलता कहती 
तुम कोमल 
करुणा बहती 
तुम्हारे अन्दर 

लालिमा कहती 
तुम हो लाल 
लज्जा भरती 
तुम्हारे गाल 

पवित्रता कहती 
तुम पावन 
पूजन  करती 
तुम्हारे आँगन 

सरलता कहती 
तुम बहुत सरल 
सबसे मिलती 
होकर के विरल 

सहजता कहती 
तुम सहज 
नहीं होती 
कभी असहज 

बड़प्पन कहता 
तुम हो बड़ी 
हर स्थिति में 
रहती हो खड़ी 

आशा कहती 
तुम हो आस 
निराशा तकती 
नहीं आती पास .

9 comments:

  1. सुन्दरता और सृजना के संयोग से बनी बहुत सुन्दर रचना!
    --
    शब्दों का चयन बहुत अच्छा किया है आपने इस रचना में!

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  2. सुन्दर रचना.

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  3. छोटे छंद में अच्छी सृजन।

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  4. bahy aur antar kee vyakhyaa bahut hi achhi lagi...

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  5. Ekek shabd chunida....harek pankti behtareen!

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  6. बहुत ही खूब.

    बड़प्पन कहता
    तुम हो बड़ी
    हर स्थिति में
    रहती हो खड़ी

    बहुत बढ़िया.

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  7. बहुत सुन्दर भाव लिए यह रचना बधाई

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  8. बहुत ही स्पष्ट थाप।

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  9. बहुत पसन्द आया
    हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
    बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

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