Tuesday, March 22, 2011

व्यर्थ हूँ मैं




 
व्यर्थ हूँ मैं 
यदि नहीं दे पाऊं 
सूर्य को अर्ध्य 
तुम्हारे लिए 

व्यर्थ हूँ मैं 
यदि न भर दू 
अरुणिमा भोर की 
तुम्हारे मुख पर 

व्यर्थ हूँ मैं 
यदि न हर लूं 
अवसाद सारे 
तुम्हारे हिस्से के 

व्यर्थ हूँ मैं 
यदि न जान लूं 
हलचल भारी 
तुम्हारे ह्रदय की 

व्यर्थ हूँ मैं 
यदि न पढ़ लूं 
बोल अबोले 
तुम्हारी आँखों के 

व्यर्थ हूँ मैं 
यदि न गढ़ दूं 
एक प्रतिमान  
स्नेह और विश्वास का 

व्यर्थ हूँ मैं 
यदि न रच दूं 
रचना एक 
तुम्हारे मन अनुकूल 

व्यर्थ हूँ मैं 
यदि न भर दूं 
भाव मनोरम 
तुम्हारी कविता में. 

12 comments:

  1. व्यर्थ हूँ मैं
    यदि नहीं दे पाऊं
    सूर्य को अर्ध्य
    तुम्हारे लिए
    excellent

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  2. अप्रतिम रचना...बधाई..

    नीरज

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  3. सही में व्यर्थ हो आप, joking

    अच्छा लिखा है आपने

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  4. व्यर्थ हूँ मैं
    यदि न भर दूं
    भाव मनोरम
    तुम्हारी कविता में.
    --
    बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना!

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  5. बड़े ही प्रभावी तरह से आपने कविता के सारे अंगों को स्पष्ट कर दिया है।

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  6. व्यर्थ हूँ मैं
    यदि न कर पाऊँ
    अभिनन्दन
    इन अनुपम शब्दों का ...

    अभिवादन स्वीकारें .

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  7. व्यर्थ हूँ मैं
    यदि न भर दूं
    भाव मनोरम
    तुम्हारी कविता में.
    Bahut samarpan hai rachaname...bade manohaaree bhaav!

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  8. व्यर्थ हूँ मैं
    यदि न भर दूं
    भाव मनोरम
    तुम्हारी कविता में.

    सुंदर अभिव्यक्ति.

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  9. मेरा तो जो भी कदम है वो तेरी राह में है ...
    यही भाव कविता की हर पंक्ति में नजर आ रहा है ...
    अद्भुत समर्पण ...!

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  10. सुंदर अभिव्यक्ति.अद्भुत समर्पण ...!

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  11. व्यर्थ हूँ मैं
    यदि न हर लूं
    अवसाद सारे
    तुम्हारे हिस्से के


    वाह...वाह...लाजवाब रचना...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  12. gahan prem ki abhivyakti hai aapki kavita....

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