व्यर्थ हूँ मैं
यदि नहीं दे पाऊं
सूर्य को अर्ध्य
तुम्हारे लिए
व्यर्थ हूँ मैं
यदि न भर दू
अरुणिमा भोर की
तुम्हारे मुख पर
व्यर्थ हूँ मैं
यदि न हर लूं
अवसाद सारे
तुम्हारे हिस्से के
व्यर्थ हूँ मैं
यदि न जान लूं
हलचल भारी
तुम्हारे ह्रदय की
व्यर्थ हूँ मैं
यदि न पढ़ लूं
बोल अबोले
तुम्हारी आँखों के
व्यर्थ हूँ मैं
यदि न गढ़ दूं
एक प्रतिमान
स्नेह और विश्वास का
व्यर्थ हूँ मैं
यदि न रच दूं
रचना एक
तुम्हारे मन अनुकूल
व्यर्थ हूँ मैं
यदि न भर दूं
भाव मनोरम
तुम्हारी कविता में.
व्यर्थ हूँ मैं
ReplyDeleteयदि नहीं दे पाऊं
सूर्य को अर्ध्य
तुम्हारे लिए
excellent
अप्रतिम रचना...बधाई..
ReplyDeleteनीरज
सही में व्यर्थ हो आप, joking
ReplyDeleteअच्छा लिखा है आपने
व्यर्थ हूँ मैं
ReplyDeleteयदि न भर दूं
भाव मनोरम
तुम्हारी कविता में.
--
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना!
बड़े ही प्रभावी तरह से आपने कविता के सारे अंगों को स्पष्ट कर दिया है।
ReplyDeleteव्यर्थ हूँ मैं
ReplyDeleteयदि न कर पाऊँ
अभिनन्दन
इन अनुपम शब्दों का ...
अभिवादन स्वीकारें .
व्यर्थ हूँ मैं
ReplyDeleteयदि न भर दूं
भाव मनोरम
तुम्हारी कविता में.
Bahut samarpan hai rachaname...bade manohaaree bhaav!
व्यर्थ हूँ मैं
ReplyDeleteयदि न भर दूं
भाव मनोरम
तुम्हारी कविता में.
सुंदर अभिव्यक्ति.
मेरा तो जो भी कदम है वो तेरी राह में है ...
ReplyDeleteयही भाव कविता की हर पंक्ति में नजर आ रहा है ...
अद्भुत समर्पण ...!
सुंदर अभिव्यक्ति.अद्भुत समर्पण ...!
ReplyDeleteव्यर्थ हूँ मैं
ReplyDeleteयदि न हर लूं
अवसाद सारे
तुम्हारे हिस्से के
वाह...वाह...लाजवाब रचना...बधाई स्वीकारें
नीरज
gahan prem ki abhivyakti hai aapki kavita....
ReplyDelete