आँखों में हो
किसे बसाये
नींद को जो
न आई नींद.
सपना है या
कोई हकीकत
जिसने चुराई
तुम्हारी नींद
नजरों में उनको
भर लेते
आँखों ही से
कुछ कह देते
नींद बावरी
रही भटकती
बांहों में तनिक
भर लेते
रात रह गई
संग तुम्हारे
भर दी खुमारी
अंग तुम्हारे
उसने सुन ली
दिल की धड़कन
बढ़ गई है
उसकी उलझन
करवट बदल
यह सोच रही
किस ओर चलूँ
पथ खोज रही
नींद तुम्हारी
मीठी मीठी
आएगी फिर
सपने लेकर
करना उसका
इन्तजार
आँखों में भरना
बार बार .
pyari si nind...........aaj hi bulata hoon:)
ReplyDeleteअरे वाह!
ReplyDeleteप्यारी सी निंदिया पर बहुत ही प्यारी रचना लिखी है आपने!
बहुत खूब ।
ReplyDeleteवाह!! बेहतरीन.
ReplyDeleteकरवट बदल
ReplyDeleteयह सोच रही
किस ओर चलूँ
पथ खोज रही
bahut badhiyaa
कौन नहीं चाहेगा ऐसी नींद का आना और नहीं भी आना .... कोमल कोमल सी कविता
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कविता।
ReplyDeleteउसने सुन ली
ReplyDeleteदिल की धड़कन
बढ़ गई है
उसकी उलझन sunder kavita...
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
ReplyDeleteकौन नहीं चाहेगा ऐसी नींद का आना........बहुत सुंदर भाव युक्त कविता
ReplyDeleteसुंदर भाव।
ReplyDeleteइंतज़ार भरी आँखों में नींद कहाँ आएगी ...
ReplyDeleteसुन्दर गीत !
आदरणीय रामपति जी आपकी इस सोफ्ट सी कविता को पढ़कर मुझे सर फिलिप सिडनी की के कविता याद आ रही है... नींद के जो आयाम आपने दिए हैं उनसे अलग नींद के आयाम उनमे है.. यह कविता पढ़कर आपको अपनी कविता पुनः लिखने का मन करेगा... पढ़िए....
ReplyDeleteSLEEP
Sir Philip Sidney
Come, Sleep; O Sleep! the certain knot of peace.
The baiting-place of wit, the balm of woe,
The poor man's wealth, the prisoner's release,
Th' indifferent judge between the high and low;
With shield of proof shield me from out the prease
Of those fierce darts Despair at me doth throw:
O make in me those civil wars to cease;
I will good tribute pay, if thou do so.
Take thou of me smooth pillows, sweetest bed,
A chamber deaf to noise and blind of light,
A rosy garland and a weary head;
And if these things, as being thine by right,
Move not thy heavy grace, thou shalt in me,
Livelier than elsewhere, Stella's image see.
बहुत बढ़िया रचना
ReplyDeletebhaut badiya madam je, apne kiske liye apne neend ko gawa dia
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