एक सुगंध
छोड़ गई हो तुम
जो बसी है
मेरे ह्रदय में
और प्रेरणा बन
सुबासित कर रही है
मेरा तन
मन भी
एक छवि
भूल आई हो तुम
मेरे ओसारे
स्थापित है
आँगन मेरे
तुलसी की तरह
सात्विक कर रही है
मेरा घर
द्वार भी
एक दीया
दीप्त कर आई हो
मेरे मंदिर में
अभिमंत्रित कर
प्रज्ज्वलित है
सदभावना की तरह
उसकी लौ
मेरे अन्दर
बाहर भी
एक एहसास
छोड़ आई हो
हर कोने में
भरा भरा सा है
हर कोना
सान्निध्य की तरह
जीवंत है
तुम्हारी उपस्थिति
प्रत्येक पल
हर क्षण
एक गीत
गुनगुना आई हो
मेरे जीवन में
संगीत बज उठा है
हर साज पर
झंकृत है
मन का हर तार
तुम्हारे गीत के बोल
सदैव गुनगुनाती हैं
मेरी आँखें
अधर भी .
bhaut khub, kiske geet likh rahe hoo hame bhi bato madam
ReplyDeleteएक सुगंध..........
ReplyDeleteएक छवि ..........
एक दीया..............
..एक एहसास ..............
एक गीत.................
.... प्रेम में और क्या होना चाहेगा कोई.. बहुत सुन्दर कविता...
बहुत सुन्दर रचना...बधाई
ReplyDeleteनीरज
हर रूप में तुम्हारी ही यादें।
ReplyDeleteसुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं. आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.
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