Wednesday, April 13, 2011

आइना








दर्पण के सम्मुख
राधा नैन टिकाये 
छवि देखी स्वमुख 
श्याम नजर आये  

देख अचंभित  
समझ न आये
नजरें विस्मित  
कान्हा समाये 

कृष्ण  दीवानी 
हुई बावरिया
छाई वीरानी 
गए सांवरिया 

बांसुरी की धुन 
ह्रदय लिए जाए 
प्रभु तान  सुन 
रूका न जाए 

बाहर मैं खोजूं
बसे मेरे भीतर 
जोर से  पुकारूँ 
नटखट रहे अन्दर 

कृष्ण वर्ण राधिका 
राधामय कन्हाई 
गोपी बनी गायिका 
महिमा उनकी गाई

आइना कहे 
सच ही कहना 
नैनन नीर बहे  
गए कहाँ सजना .   
 

10 comments:

  1. कृष्ण दीवानी
    हुई बावरिया
    छाई वीरानी
    गए सांवरिया

    bhaut khub, aap toh ice cream roj khilaya karo, achi achi rachna likhte hoo

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  2. बाहर मैं खोजूं
    बसे मेरे भीतर
    जोर से पुकारूँ
    नटखट रहे अन्दर ... sundar abhivyakti

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  3. वाह वाह्……………बेहद उम्दा रचना…………कृष्ण प्रेममयी राधे , राधा प्रेममयो हरि…………भाव विभोर कर दिया।...

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  4. वाह-वाह!
    कृष्णमय हो गये हम भी
    इस रचना को पढ़कर!

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  5. हर ओर कान्हा दिख जाये।

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  6. बाहर मैं खोजूं
    बसे मेरे भीतर

    sunder abhivyakti

    shubhkamnayen

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  7. आइना कहे
    सच ही कहना
    नैनन नीर बहे
    गए कहाँ सजना .
    खुबसूरत भक्तिमय रचना, बधाई.......

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  8. बहुत अच्छी लगी यह कविता।

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  9. .........बेहद उम्दा रचना

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  10. बहुत अच्छी लगी यह कविता।

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