Friday, April 15, 2011

अश्रुधार






नदी गाये ले अलाप 
बही जाए अश्रुधार 
लहर उठे करे प्रलाप
अकेली नाव मझधार    

चंचलता मौन इधर 
ह्रदय करे हाहाकार
नौका जायेगी बिखर 
नाविक बिन पतवार 

पानी में उफान है 
दूर बहुत तट खड़े 
गति में बढ़ता वेग है 
निर्जन में जा पड़े   

जल की तरंग  सब 
लेकर जायेगी किधर 
मूक बन कहेंगे तब 
हमको जाना है उधर 

निर्मल धारा  कितनी 
खारा  बन जायेगी 
नियति चाहे जितनी 
उतनी बह पाएगी 

नदी की सुने कौन 
चाहा जिधर मोड़ा उधर 
कलकल बहती मौन 
जाने न जाना है किधर   

नैया  रोये जार जार 
आंसू  करते मनुहार 
पुकारती है बार बार 
कहाँ गए खेवनहार .  

11 comments:

  1. नैया रोये जार जार
    आंसू करते मनुहार
    पुकारती है बार बार
    कहाँ गए खेवनहार .
    --
    बहुत बढ़िया रचना!
    अपने देश के भी यही हालात हैं!

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  2. नदी के दर्द को शब्दो मे पिरो दिया…………फिर चाहे नदी हो या नारी।

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  3. सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

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  4. नदी के दर्द को शब्दो मे पिरो दिया.... आपने काबिलेतारीफ बेहतरीन

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  5. खेवन हार के बग़ैर नाव तो क्या जीवन भी दिशाहीन हो जाती है। इसी दर्द को बहुत ही कुशलता से समेटा है अपने इस कविता में।

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  6. नदी के दर्द को शब्दो मे पिरो दिया, सुन्दर प्रस्तुति

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  7. निर्मल धारा कितनी
    खारा बन जायेगी
    नियति चाहे जितनी
    उतनी बह पाएगी

    भावुक...सुन्दर...मर्मस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....

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  8. जल की तरंग सब
    लेकर जायेगी किधर
    मूक बन कहेंगे तब
    हमको जाना है उधर.

    बेहतरीन और सुन्दर प्रस्तुति. बधाई.

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