नदी गाये ले अलाप
बही जाए अश्रुधार
लहर उठे करे प्रलाप
अकेली नाव मझधार
चंचलता मौन इधर
ह्रदय करे हाहाकार
नौका जायेगी बिखर
नाविक बिन पतवार
पानी में उफान है
दूर बहुत तट खड़े
गति में बढ़ता वेग है
निर्जन में जा पड़े
जल की तरंग सब
लेकर जायेगी किधर
मूक बन कहेंगे तब
हमको जाना है उधर
निर्मल धारा कितनी
खारा बन जायेगी
नियति चाहे जितनी
उतनी बह पाएगी
नदी की सुने कौन
चाहा जिधर मोड़ा उधर
कलकल बहती मौन
जाने न जाना है किधर
नैया रोये जार जार
आंसू करते मनुहार
पुकारती है बार बार
कहाँ गए खेवनहार .
नैया रोये जार जार
ReplyDeleteआंसू करते मनुहार
पुकारती है बार बार
कहाँ गए खेवनहार .
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बहुत बढ़िया रचना!
अपने देश के भी यही हालात हैं!
नदी के दर्द को शब्दो मे पिरो दिया…………फिर चाहे नदी हो या नारी।
ReplyDeleteसार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
ReplyDeleteनदी के दर्द को शब्दो मे पिरो दिया.... आपने काबिलेतारीफ बेहतरीन
ReplyDeleteखेवन हार के बग़ैर नाव तो क्या जीवन भी दिशाहीन हो जाती है। इसी दर्द को बहुत ही कुशलता से समेटा है अपने इस कविता में।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteनदी के दर्द को शब्दो मे पिरो दिया, सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहतरीन कृति।
ReplyDeleteनिर्मल धारा कितनी
ReplyDeleteखारा बन जायेगी
नियति चाहे जितनी
उतनी बह पाएगी
भावुक...सुन्दर...मर्मस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....
जल की तरंग सब
ReplyDeleteलेकर जायेगी किधर
मूक बन कहेंगे तब
हमको जाना है उधर.
बेहतरीन और सुन्दर प्रस्तुति. बधाई.
अच्छी कविता.
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