नेह से तुमने कंठ लगाया
तपता ह्रदय बहुत जुडाया
खुशबू तुम्हारी उर में समाई
सुप्त स्वपन ने ली अंगड़ाई .
मन में उठी तरंग हिलोर
भिगो गई सब पोर पोर
जिव्हा स्तब्ध शब्द खो गए
सूखा कंठ जड़ हो गए .
नीर का दरिया तोड़े बंध
सूखी धरती हुई बंजर
दिन बीते जैसे तैसे
रातें हो जाये खंजर .
थम गया जैसे कालचक्र
भाग्य दृष्टि ना हो वक्र
पथराये नैना ना झपके
भर लूं इनमें जी भरके .
कहाँ रहे प्रिय कौन देस
तुम्हें हमारी याद ना आई
तुम बिन कैसे रैना बीते
उन लम्हों की कैसे भरपाई .
एक बार जो चित्त बिठाया
जीवन भर का प्रसाद पाया
प्यासे नैनों में जो समाया
पुलकित मन अति हरषाया .
परदेस ना जाने देंगे अब
काली घटाओं का बंधन
छोड़ गए जो अब मितवा
फिर ना होगा अपना मिलन .
बढ़िया रचना लिखी है आपने।
ReplyDelete--
नेह से तुमने कंठ लगाया
तपता ह्रदय बहुत जुडाया
--
अगर..
तप्त ह्रदय को बहुत मिलाया..
कर दें तो...
बहुत अच्छा लगेगा।
सुन्दर रचना..
ReplyDeletebahut sundar rachana. badhaaI.
ReplyDeleteपरदेस ना जाने देंगे अब
ReplyDeleteकाली घटाओं का बंधन
छोड़ गए जो अब मितवा
फिर ना होगा अपना मिलन .
Komal-si,nazuk-si iltija,jise koyi nazarandaaz na kar sake!
मन तो अपनों को बाँधकर रखना चाहता है।
ReplyDeleteपरदेस ना जाने देंगे अब
ReplyDeleteकाली घटाओं का बंधन
छोड़ गए जो अब मितवा
फिर ना होगा अपना मिलन .
दर्द की इंतहा है। सुंदर भावाभिव्यक्ति।
परदेस ना जाने देंगे अब
ReplyDeleteकाली घटाओं का बंधन
छोड़ गए जो अब मितवा
फिर ना होगा अपना मिलन .
......बिल्कुल सच कहती ये पंक्तियां ...भावमय करते शब्द ।
खूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteनीर का दरिया तोड़े बंध
ReplyDeleteसूखी धरती हुई बंजर
दिन बीते जैसे तैसे
रातें हो जाये खंजर .
खूबसूरती से किसी के दिल की व्यथा पेश की है