Wednesday, April 27, 2011

दिखाओ ना सूरज




काजल की कोठरी
जन्मस्थली है मेरी 
धरती और आसमान 
मेरा घर संसार 

अमावस को माना
पूर्णिमा शरद की 
काले  कटोरों में 
थी सुधा सपनों की 

पूरे हुए कुछ 
कुछ को किनारा 
डूबे कुछ मझधार 
कईयों का वारा न्यारा 

बैठें है आस में कई 
आये कोई उबार ले 
प्रतीक्षा में आँख भींचे 
कोई तो संवार दे 

कुछ से तो 
की बड़ी मनुहार 
ना खोलो पलक 
जाओगे खुद को हार 

माने ना ये खुदगर्ज 
दामन छुड़ा लिया 
जाने को दूर हमसे 
उनको बुला लिया 

दिखाओ ना सूरज इन्हें
सह नहीं पायेंगे 
पंख झुलस जो गए 
फिर उड़ ना पायेंगे .

10 comments:

  1. • इस कविता के द्वारा आपने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि आपकी रचनात्मकता मरुस्थल में भी सूखी नहीं है।

    ReplyDelete
  2. दिखाओ ना सूरज इन्हें
    सह नहीं पायेंगे
    पंख झुलस जो गए
    फिर उड़ ना पायेंगे .
    --
    बहुत उम्दा रचना!
    बहुत उत्तम शब्दों का चयन किया है आपने!

    ReplyDelete
  3. दिखाओ ना सूरज इन्हें
    सह नहीं पायेंगे
    पंख झुलस जो गए
    फिर उड़ ना पायेंगे .
    सुन्दर और प्रशंसनीय अभिव्यक्ति , बधाई ..

    ReplyDelete
  4. प्रशंसनीय अभिव्यक्ति सुन्दर रचना! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है!

    ReplyDelete
  5. सुन्दर भावों को संजोये अच्छी रचना

    ReplyDelete
  6. दिखाओ ना सूरज इन्हें
    सह नहीं पायेंगे
    पंख झुलस जो गए
    फिर उड़ ना पायेंगे .

    bahut bhaavpurn abhivyakti, badhai sweekaaren.

    ReplyDelete
  7. very nice bahut hi spasht aur bhavpurn likha hai aapne jitni taarif ki jaye utna kam hai....
    shabdon ka chayan aur unko sajoya bahut acche se gaya hai....wakai bahut sundar

    ReplyDelete
  8. अमावस को माना
    पूर्णिमा शरद की
    काले कटोरों में
    थी सुधा सपनों की
    ज़िन्दगी मे जिसने दुख सुख सहे वही असल मे जीया है। भावमय प्रस्तुति। शुभकामनायें।

    ReplyDelete
  9. माने ना ये खुदगर्ज
    दामन छुड़ा लिया
    जाने को दूर हमसे
    उनको बुला लिया

    bhaut khub, jab koi dur jata hai woh wapas nahi ata.

    ReplyDelete
  10. दिखाओ ना सूरज इन्हें
    सह नहीं पायेंगे
    पंख झुलस जो गए
    फिर उड़ ना पायेंगे .

    काश यह हर कोई समझ पाता।

    ReplyDelete