पथ भरा कांटे या धूल
बढ़ चलूंगी मैं संभल
शूल भी बनेंगे फूल
चलकर जाउंगी निकल
मिलेंगे सब राही नये
लक्ष्य भी होगा नया
साथी सब छूट गए
मार्ग भी होगा नया
कैसे बीतेंगे वे पल
जो न होगे तुम वहां
मुड़कर देखूँगी विकल
मैं रहूंगी फिर कहाँ
स्रोत छूटा साहस का
अवलंबन और संबल
संग पीछे प्रेरणा का
नैनों में भरे कम्पन
डगमगाई हूँ मगर
समझ कुछ आता नहीं
अनजानी सी एक डगर
छोर दिखलाता नहीं
भटक जाऊं यदि कभी
दीप दिखलाना मुझे
थक बैठूं यदि वहीँ
ऊष्मा दे जाना मुझे
जब कभी अवकाश हो
स्मृतियों में विचर आना
जब मुझे अवसाद हो
सपने कुछ दे जाना
चल पड़ी हूँ मैं एकल
राह को पहचान देकर
भर लिया पग में बल
तुम्हारा नाम लेकर .
भटक जाऊं यदि कभी
ReplyDeleteदीप दिखलाना मुझे
थक बैठूं यदि वहीँ
ऊष्मा दे जाना मुझे
very nice kya baat kiske liye itne sundar rachna madam jee
मिलेंगे सब राही नये
ReplyDeleteलक्ष्य भी होगा नया
साथी सब छूट गए
मार्ग भी होगा नया
अंतिम बात है, आगे और आगे बढ़ते रहना। सुंदर कविता, प्रेरक भी।
बहुत उत्तम अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteगुरुदेव रबिन्द्र नाथ जी का एक गीत आपकी रचना पढ़ कर याद आ गया जिसका हिंदी अनुवाद ये है "यदि आपकी पुकार सुनकर कोई नहीं आता तो अकेले चल पड़िए"
ReplyDeleteइस बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकारें.
नीरज
पथ भरा कांटे या धूल
ReplyDeleteबढ़ चलूंगी मैं संभल
शूल भी बनेंगे फूल
चलकर जाउंगी निकल
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रचना में शब्द-चयन बहुत बढ़िया है!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
bahut achhi abhivyakti
ReplyDeleteपथ भरा कांटे या धूल
ReplyDeleteबढ़ चलूंगी मैं संभल
शूल भी बनेंगे फूल
चलकर जाउंगी निकल .
बहुत सुंदर रचना. एक सरल अभिव्यक्ति एक सरल मन की. रचना में शब्द चयन वाकई में बहुत सुंदर है.
बहुत खूबसूरती के साथ शब्दों को पिरोया है इन पंक्तिया में आपने...बहुत सुंदर रचना
ReplyDeletekhubsurat abhivyakti........
ReplyDeleteयही अथक विश्वास है।
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