मृदुल स्पर्श मुस्कान मोहिनी
मन को बहुत लुभाती है
बंद नयन स्वपन में भी
सोयी चाहत सहलाती है .
रेशम धागे सा प्रेमपाश
चाबुक काम न आता है
उनका छूना हौले हौले
दिल को भी छू जाता है .
स्पर्श देह का नेह नहीं
ह्रदय भी नम हो जाता है
मन से मन का मेल नहीं
भाव भी कम हो जाता है .
मेल मिलाप से परे हो तुम
धड़कन का है आना जाना
गहन स्पंदन बसे हो तुम
दूर नहीं तुम बस जाना .
राह निहारेंगे दो लोचन
सन्देश समीर पहुंचाएगी
जब साथ रहेगी तन्हाई
याद बहुत फिर आएगी .
स्पर्श देह का नेह नहीं
ReplyDeleteह्रदय भी नम हो जाता है
मन से मन का मेल नहीं
भाव भी कम हो जाता है .
bahut umda rachna hai...
सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
ReplyDeleteबेहद सुन्दर और कोमल अभिव्यक्ति को वैसे ही अभिव्यक्त किया ...सादर
ReplyDelete