Wednesday, October 12, 2011

आँचल किसको बांधू

















बार बार   करूँ  विनती 
न आना मेरे द्वार 
आँखों में अश्रू लिए 
फिर भी रही निहार 


आये दूर देस से तुम 
नहीं यहाँ कोई व्यापार 
देने आये प्रीत की कुमकुम
कर न सकूं स्वीकार 

देखूं मन नैनों से तुमको  
मन पावन हो जाता 
नहीं बसे दूर मुझसे   
आहट आस पास ही पाता 

लगता है आते हो मुझ तक 
कैसे मैं तुमको समझाऊँ 
प्रीत तुम्हारी ऐसा बंधन 
मर न सकूं न जी पाऊँ 

जैसा रूप बनाना चाहूं 
काहे को नहीं बनता है 
भरना चाहूं सिर्फ भाव 
भाव क्यों नहीं ठहरता है 

क्या होगी परिणति इसकी 
सोच के मन घबराता है 
वंचित होंगे एक झलक को 
दृश्य सामने आता है . 

द्वन्द भरा यह जीवन 
सिक्के के दो पहलू 
दोनों तो मेरे ही हैं
आँचल किसको बांधू

Tuesday, October 11, 2011

गया संग मेरा स्पंदन























भोर हुई सूरज आया
पर उसमें वह ताप कहाँ
नव जीवन का संदेसा लाया 
चली गई वह आब कहाँ 

निकली गौरैया नीड़ से अपने 
किसके आँगन जाऊं मैं 
मेरा ओसारा सूना पड़ा 
किसको गीत सुनाऊँ मैं 

आया एक कबूतर जोड़ा 
सोचा कुछ दाना चुग लूं 
देखा पसरा था सन्नाटा 
कहा कि उनकी सुधि ले लूं 

धूप गुलाबी  का एक टुकड़ा
छनकर आता खिड़की से 
आज खड़ा है चौखट थामे 
क्या जाऊं अन्दर झिडकी से 

निस्तब्ध खड़ी दीवार घडी 
समय न काटे कटता है 
जीवन चक्र रूका हो जैसे 
जरा भी नहीं सरकता है 

क्यारी में जो खिला है टुह टुह  
नहीं रही रंगत उसकी 
किसकी वेणी में ठहरूं 
व्यर्थ जिन्दगी है मेरी 

ह्रदय करता है क्रन्दन 
गए कहाँ मेरे रघुराई 
गया संग मेरा स्पंदन 
लौटा लाओ जग जिय जाई 

रुनझुन में पड़ जाए प्राण 
पुरवाई जीवनदायिनी हो 
नाचे मोर पपीहा चहके 
प्रिय क़ी चली पालकी हो .

Friday, October 7, 2011

मन की मैना

ऐ !  मेरे मन की मैना 
तनिक जाओ उनके संग 
जब बैठे हों फुर्सत में 
थोडा करना उनको तंग 

नींद न आये जब उनको 
एक मीठा गीत सुना देना 
फिर भी यदि उदासी हो 
निज पंखों से सहला देना 

जब सोये हों कमल सेज 
सिरहाने जाकर रहना 
सपनों का जब पलटे पेज 
मूरत मेरी बनकर रहना 

घुंघुराली अलकें जब मचले 
गालों से उन्हें हटा देना 
नैनों में छाई खुमारी को 
अँखियाँ अपनी में भर लेना 

उजास भोर में उठें अधीर 
तुम समझाना देना धीर 
यदि किसी बात से हों आहत
सब हर लेना उनकी पीर

जाएँ जब अपनी अमराई 
शाखों पर तुम जाना झूल 
कूक कूक कर उन्हें रिझाना 
याद रहे न सब कुछ भूल 

लिखने बैठें जब पाती 
कलम उठाकर लाना तुम 
ज्यों लिखें ढाई आखर 
हया से मर न जाना तुम  .