बार बार करूँ विनती
न आना मेरे द्वार
आँखों में अश्रू लिए
फिर भी रही निहार
आये दूर देस से तुम
नहीं यहाँ कोई व्यापार
देने आये प्रीत की कुमकुम
कर न सकूं स्वीकार
देखूं मन नैनों से तुमको
मन पावन हो जाता
नहीं बसे दूर मुझसे
आहट आस पास ही पाता
लगता है आते हो मुझ तक
कैसे मैं तुमको समझाऊँ
प्रीत तुम्हारी ऐसा बंधन
मर न सकूं न जी पाऊँ
जैसा रूप बनाना चाहूं
काहे को नहीं बनता है
भरना चाहूं सिर्फ भाव
भाव क्यों नहीं ठहरता है
क्या होगी परिणति इसकी
सोच के मन घबराता है
वंचित होंगे एक झलक को
दृश्य सामने आता है .
द्वन्द भरा यह जीवन
सिक्के के दो पहलू
दोनों तो मेरे ही हैं
आँचल किसको बांधू
bahut sunder likha hai apne..,.
ReplyDeletesunder bahv ....
ReplyDeleteबहुत उम्दा...
ReplyDeleteबार बार करूँ विनती
ReplyDeleteन आना मेरे द्वार
आँखों में अश्रू लिए
फिर भी रही निहार khubsurat panktiya...
अपने दुख, अपने ही निर्णय
ReplyDeleteलाजवाब रचना...बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
आये दूर देस से तुम
ReplyDeleteनहीं यहाँ कोई व्यापार
देने आये प्रीत की कुमकुम
कर न सकूं स्वीकार
very nice
द्वन्द भरा यह जीवन
ReplyDeleteसिक्के के दो पहलू
द्वन्द से परे जीवन कहाँ !
देखूं मन नैनों से तुमको
ReplyDeleteमन पावन हो जाता
नहीं बसे दूर मुझसे
आहट आस पास ही पाता
लगता है आते हो मुझ तक
कैसे मैं तुमको समझाऊँ
प्रीत तुम्हारी ऐसा बंधन
मर न सकूं न जी पाऊँ
Kya gazab kee rachana hai!
लगता है आते हो मुझ तक
ReplyDeleteकैसे मैं तुमको समझाऊँ
प्रीत तुम्हारी ऐसा बंधन
मर न सकूं न जी पाऊँ !!!!!
द्वन्द भरा यह जीवन
सिक्के के दो पहलू
दोनों तो मेरे ही हैं
आँचल किसको बांधू
kya kahun.. behadd umda bhaavo se bhari aapki rachna. Bdhai sweekar karen.
bahut khoobsurat likha hai aapne..
ReplyDeleteइस होली आपका ब्लोग भी चला रंगने
ReplyDeleteदेखिये ना कैसे कैसे रंग लगा भरने ………
कहाँ यदि जानना है तो यहाँ आइये ……http://redrose-vandana.blogspot.com
dono ko aanchal me bandhna dushkar par shreyashkar hoga...bahut acchhi bhavpoorn kavita...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...
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