Wednesday, September 22, 2010

मछलियाँ

तैर रही हैं
सैंकड़ों मछलियाँ
मेरे भीतर
और बह रही है
ए़क नदी ।

नदी
हंस रही है
कल कल स्वर में
और संगीत बज रहा है
नदी में ।

आज
नशा है
नदी में
समाने या फिर
समा लेने का .

वह
ना तो टूट रहा है
ना ही डुबो रहा है
हाँ लहरों पर
सवार हो
यात्रा कर रहा है
समय से परे ।

मछलियाँ
बाहर आकर
छू लेना चाहती हैं
तुम्हें
और जी लेना चाहती हैं
पानी के सूखने से पहले ।

Monday, September 20, 2010

बोझ

प्रेम की
अधिकता
गठरी
भावों की
कहीं
लग तो नहीं रही
बोझ
भारी ।

हाथो में
हाथ
वादा लिया
रहने को साथ
कहीं
वचन का बोझ
लग तो नहीं रहा
भारी ।

निकटता
हुई अति
चाहते हो
कुछ दूरी या
निकटता का
बोझ
हो गई
मजबूरी ।

बोझ
जब भी
बनने लगे
मधुर रिश्ता
कह देना
मुझको
हो जायेंगे हम
विदा ।

Wednesday, September 15, 2010

पतझड़ की तरह

हथेलियों में भर दूं तुम्हारी
सरसों के फूल
और तुम्हारे कानों में कहूं
वसंत आ गया है ।

चाहता हूँ गेहूं की बालियों से
गूँथ दूं तुम्हारे केश
और तुम्हारे कानों में कहूं
वसंत आ गया है ।

साख से झड़ते
पत्ते रख दूं तेरे क़दमों में
और तुम्हारे कानों में पूछूं
वसंत के बाद यूं पतझड़ की तरह
ठुकरा तो नहीं दोगी ।

Monday, September 13, 2010

तुम्हारा एहसास

तुम्हारे
एहसास के साए में
जिंदगी की दोपहर
बीत जायेगी
साथ रहा जो तुम्हारा
यह और भी
खूबसूरत हो जाएगी .

तुम्हारे
क़दमों की सधी
लय ताल
भटकने नहीं
देगी मुझे
दे देगी मेरे क़दमों
को भी
एक नई दिशा ।

तुम्हारी
निर्मल सोच
नहीं देगी प्रवेश
विकारों को
मन में मेरे
और तैरेंगे
सुविचार
सबके लिए ।

तुम्हारा
दृढ निश्चय
बढ़ाएगा
मेरा हौसला
भरेगा मुझमें
शक्ति
करने को सामना
रहने को अडिग
विपरीत स्थितियों में भी ।

तुम्हारी
गहरी आँखें
देती हैं सन्देश
परिपक्वता का
ठहराव का
देती हैं निर्देश
छूने को शिखर
और करती हैं प्रेरित
फिर से उठने को
हर हार के बाद ।

तुम्हारा
अदृश्य प्रेम
बढ़ाता है
मेरे मन की
पवित्रता
बताता है
कैसे निभाते है
प्रीत की रीत
मौन रहकर भी ।

Friday, September 10, 2010

सही पहचान

एक राजकुमारी थी
देखने में दुनिया को
नहीं लगती थी
खूबसूरत
दिल था उसका अच्छा
अच्छी थी उसकी सीरत

एक साधारण सा
इंसान आया और
राजकुमारी से करने लगा
प्यार ।

राजकुमारी ने पूछा
ना मेरे पास रूप
ना मेरे पास रंग
फिर क्यों करते हो
मुझसे इतना प्यार ।

वो साधारण युवक
चुप रहा
कुछ नहीं बोला
प्यार करता रहा
राजकुमारी को
बेइन्तहा चाहता रहा ।

राजकुमारी
पूछती रही
बस ए़क सवाल ।

एक दिन
एक आदमी बीमार पड़ा
कोई उसे देखने नहीं आया
राजकुमारी
उधर से रही थी गुजर
उसने बीमार आदमी की मदद की ।

वो युवक
मुस्कुराता रहा
राजकुमारी से प्यार करता रहा
राजकुमारी बस पूछती रही
क्यों करते हो इतना प्यार ।

फिर एक दिन
एक आदमी को जरुरत पड़ी
राजकुमारी ही आगे आयी
युवक देखता रहा
उसे अपनी राजकुमारी पर गर्व था
अपने प्यार पर गर्व था
अभिमान था
राजकुमारी ने फिर पूछा
क्यों करते हो इतना प्यार ।

एक दिन
वो युवक स्वयं
मुसीबत में फंस गया
उसका कोई सगा
कोई दोस्त साथ नहीं आये
राजकुमारी फिर भी आयी ।

राजकुमारी ने फिर पूछा
क्यों करते हो इतना प्यार
एक साधारण से
नहीं मुझमें कुछ खास
फिर क्यों करते हो इतना प्यार ।

युवक आया
अपने साथ
एक जादुई दर्पण लाया
राजकुमारी के सामने उसने दर्पण रखा ।

राजकुमारी को
अपना चेहरा उसमें दिखाई नहीं दिया
उसमें थी
कमल पर विराजमान लक्ष्मी
हंस पर सवार सरस्वती
शिव के साथ पार्वती
और
कृष्ण के साथ राधा ।

राजकुमारी खुद को
पहचान ना सकी
लेकिन
उस साधारण युवक को राजकुमारी की
हो गई थी पहचान ।

राजकुमारी ने
पलट कर देखा
युवक वहां नहीं था
राजकुमारी की सही पहचान दिखाने के लिए
उसने किया था जादूगर से समझौता
और उस जादुई दर्पण के बदले
कर दिया था स्वयं का समर्पण ।

राजकुमारी आज भी है
लेकिन युवक नहीं आ सका लौट कर
आँगन के गमले में
फूल बनकर
आज भी रिझाता है वो
अपनी राजकुमारी को ।

राजकुमारी पता नहीं
कभी पहचान पायेगी उसे
क्या मिल पायेगा युवक को
उसका प्यार
जिसने राजकुमारी को बताई
उसकी सही पहचान
युवक इन्तजार में है
आज भी .