Monday, September 20, 2010

बोझ

प्रेम की
अधिकता
गठरी
भावों की
कहीं
लग तो नहीं रही
बोझ
भारी ।

हाथो में
हाथ
वादा लिया
रहने को साथ
कहीं
वचन का बोझ
लग तो नहीं रहा
भारी ।

निकटता
हुई अति
चाहते हो
कुछ दूरी या
निकटता का
बोझ
हो गई
मजबूरी ।

बोझ
जब भी
बनने लगे
मधुर रिश्ता
कह देना
मुझको
हो जायेंगे हम
विदा ।

1 comment:

  1. रिश्ते बोझ बने ही क्यों
    सुन्दर रचना

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