प्रेम की
अधिकता
गठरी
भावों की
कहीं
लग तो नहीं रही
बोझ
भारी ।
हाथो में
हाथ
वादा लिया
रहने को साथ
कहीं
वचन का बोझ
लग तो नहीं रहा
भारी ।
निकटता
हुई अति
चाहते हो
कुछ दूरी या
निकटता का
बोझ
हो गई
मजबूरी ।
बोझ
जब भी
बनने लगे
मधुर रिश्ता
कह देना
मुझको
हो जायेंगे हम
विदा ।
रिश्ते बोझ बने ही क्यों
ReplyDeleteसुन्दर रचना