तैर रही हैं
सैंकड़ों मछलियाँ
मेरे भीतर
और बह रही है
ए़क नदी ।
नदी
हंस रही है
कल कल स्वर में
और संगीत बज रहा है
नदी में ।
आज
नशा है
नदी में
समाने या फिर
समा लेने का .
वह
ना तो टूट रहा है
ना ही डुबो रहा है
हाँ लहरों पर
सवार हो
यात्रा कर रहा है
समय से परे ।
मछलियाँ
बाहर आकर
छू लेना चाहती हैं
तुम्हें
और जी लेना चाहती हैं
पानी के सूखने से पहले ।
मछलियाँ
ReplyDeleteबाहर आकर
छू लेना चाहती हैं
तुम्हें
और जी लेना चाहती हैं
पानी के सूखने से पहले
बहुत खूबसूरत पंक्तियां है...कभी य़हां भी आइए
http://veenakesur.blogspot.com/
ना तो टूट रहा है
ReplyDeleteना ही डुबो रहा है
हाँ लहरों पर
सवार हो
यात्रा कर रहा है
अच्छी पंक्तिया ........
पढ़े और बताये कि कैसा लगा :-
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html
मछलियाँ
ReplyDeleteबाहर आकर
छू लेना चाहती हैं
तुम्हें
और जी लेना चाहती हैं
पानी के सूखने से पहले ।
बहुत खूबसूरत रचना ... खूबसूरत बिम्ब