Wednesday, September 22, 2010

मछलियाँ

तैर रही हैं
सैंकड़ों मछलियाँ
मेरे भीतर
और बह रही है
ए़क नदी ।

नदी
हंस रही है
कल कल स्वर में
और संगीत बज रहा है
नदी में ।

आज
नशा है
नदी में
समाने या फिर
समा लेने का .

वह
ना तो टूट रहा है
ना ही डुबो रहा है
हाँ लहरों पर
सवार हो
यात्रा कर रहा है
समय से परे ।

मछलियाँ
बाहर आकर
छू लेना चाहती हैं
तुम्हें
और जी लेना चाहती हैं
पानी के सूखने से पहले ।

3 comments:

  1. मछलियाँ
    बाहर आकर
    छू लेना चाहती हैं
    तुम्हें
    और जी लेना चाहती हैं
    पानी के सूखने से पहले
    बहुत खूबसूरत पंक्तियां है...कभी य़हां भी आइए
    http://veenakesur.blogspot.com/

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  2. ना तो टूट रहा है
    ना ही डुबो रहा है
    हाँ लहरों पर
    सवार हो
    यात्रा कर रहा है

    अच्छी पंक्तिया ........

    पढ़े और बताये कि कैसा लगा :-
    http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html

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  3. मछलियाँ
    बाहर आकर
    छू लेना चाहती हैं
    तुम्हें
    और जी लेना चाहती हैं
    पानी के सूखने से पहले ।
    बहुत खूबसूरत रचना ... खूबसूरत बिम्ब

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