Friday, July 12, 2013

नदी




नदी में आ गया

भीषण सैलाब

साथ देने को फट पड़ा

हुंकारता बादल

और विलुप्त हो  गए

कई गावं शहर

खेत खलिहान

और सभ्यताएं भी  .


नाराज थी नदी

कि  क्यों रौंदा

आँचल उसका

क्यों किया मलिन

उसका निर्मल जल .


लौटा दिया उसने

शवों का अम्बार

दिखा दिया उसने

प्रकर्ति है सर्वोपरि

चाहिय उसे भी

थोड़ी सी निजता .

Wednesday, October 12, 2011

आँचल किसको बांधू

















बार बार   करूँ  विनती 
न आना मेरे द्वार 
आँखों में अश्रू लिए 
फिर भी रही निहार 


आये दूर देस से तुम 
नहीं यहाँ कोई व्यापार 
देने आये प्रीत की कुमकुम
कर न सकूं स्वीकार 

देखूं मन नैनों से तुमको  
मन पावन हो जाता 
नहीं बसे दूर मुझसे   
आहट आस पास ही पाता 

लगता है आते हो मुझ तक 
कैसे मैं तुमको समझाऊँ 
प्रीत तुम्हारी ऐसा बंधन 
मर न सकूं न जी पाऊँ 

जैसा रूप बनाना चाहूं 
काहे को नहीं बनता है 
भरना चाहूं सिर्फ भाव 
भाव क्यों नहीं ठहरता है 

क्या होगी परिणति इसकी 
सोच के मन घबराता है 
वंचित होंगे एक झलक को 
दृश्य सामने आता है . 

द्वन्द भरा यह जीवन 
सिक्के के दो पहलू 
दोनों तो मेरे ही हैं
आँचल किसको बांधू

Tuesday, October 11, 2011

गया संग मेरा स्पंदन























भोर हुई सूरज आया
पर उसमें वह ताप कहाँ
नव जीवन का संदेसा लाया 
चली गई वह आब कहाँ 

निकली गौरैया नीड़ से अपने 
किसके आँगन जाऊं मैं 
मेरा ओसारा सूना पड़ा 
किसको गीत सुनाऊँ मैं 

आया एक कबूतर जोड़ा 
सोचा कुछ दाना चुग लूं 
देखा पसरा था सन्नाटा 
कहा कि उनकी सुधि ले लूं 

धूप गुलाबी  का एक टुकड़ा
छनकर आता खिड़की से 
आज खड़ा है चौखट थामे 
क्या जाऊं अन्दर झिडकी से 

निस्तब्ध खड़ी दीवार घडी 
समय न काटे कटता है 
जीवन चक्र रूका हो जैसे 
जरा भी नहीं सरकता है 

क्यारी में जो खिला है टुह टुह  
नहीं रही रंगत उसकी 
किसकी वेणी में ठहरूं 
व्यर्थ जिन्दगी है मेरी 

ह्रदय करता है क्रन्दन 
गए कहाँ मेरे रघुराई 
गया संग मेरा स्पंदन 
लौटा लाओ जग जिय जाई 

रुनझुन में पड़ जाए प्राण 
पुरवाई जीवनदायिनी हो 
नाचे मोर पपीहा चहके 
प्रिय क़ी चली पालकी हो .

Friday, October 7, 2011

मन की मैना

ऐ !  मेरे मन की मैना 
तनिक जाओ उनके संग 
जब बैठे हों फुर्सत में 
थोडा करना उनको तंग 

नींद न आये जब उनको 
एक मीठा गीत सुना देना 
फिर भी यदि उदासी हो 
निज पंखों से सहला देना 

जब सोये हों कमल सेज 
सिरहाने जाकर रहना 
सपनों का जब पलटे पेज 
मूरत मेरी बनकर रहना 

घुंघुराली अलकें जब मचले 
गालों से उन्हें हटा देना 
नैनों में छाई खुमारी को 
अँखियाँ अपनी में भर लेना 

उजास भोर में उठें अधीर 
तुम समझाना देना धीर 
यदि किसी बात से हों आहत
सब हर लेना उनकी पीर

जाएँ जब अपनी अमराई 
शाखों पर तुम जाना झूल 
कूक कूक कर उन्हें रिझाना 
याद रहे न सब कुछ भूल 

लिखने बैठें जब पाती 
कलम उठाकर लाना तुम 
ज्यों लिखें ढाई आखर 
हया से मर न जाना तुम  . 

Friday, September 16, 2011

एक उजास


दीया तुम 
तुम्ही बाती
तेल भी तुम 
उजाला लाती  


आहुति तुम 
तुम्हीं समिधा
मंत्र भी तुम 
देवों की विधा 

प्रज्ज्वल तुम 
तुम्हीं प्रकाश 
सितारा तुम 
भरती आकाश 

जीवन तुम 
तुम्हीं धड़कन 
सांसें तुम 
तुम्हीं स्पंदन 

पुरवा तुम 
तुम्हीं रिमझिम 
शीतल तुम 
बरसो छमछम

साज हो तुम 
तुम्हीं श्रृंगार 
सरगम तुम 
तुम्हीं मल्हार  


                                                                  एक उजास 
नैनन भर देता 
दूर है वास 
अंक भर लेता . 

Monday, August 22, 2011

अनुभव












जिन्दगी ने कुछ 
यूं ही बांटे 
कभी दिए फूल 
तो कभी कांटे 

कभी दिखाया 
झिलमिल अर्श 
तो कभी बैठाया 
खाली फर्श 

भर दी कुछ 
आँखों में स्याही 
पलकें भी गई 
जुगनू से ब्याही 

बैचैन था बहुत 
मिला अमलताश 
प्रतीक्षा में रहा 
सुर्ख सा पलाश 

रूकना तुम नहीं 
चलते जाना राही 
ठहरना वहीँ 
जाओ जहाँ चाही 

दरिया की जैसे 
एक तुम लहर 
कैसे कटेगा जीवन 
न बीते प्रहर 

जिन्दगी ने दिया 
अनुभव अनूठा 
खुशियाँ हैं जाती 
दिखाती अगूंठा . 

Tuesday, August 16, 2011

घन छाये
















जेठ की तपती दुपहरी 
धरा थी शुष्क दग्ध 
मेघ आये ले सुनहरी 
पावस की बूंदे लब्ध 

संचार सा होने लगा
जी उठी जीवन मिला 
सोया हुआ पंछी जगा 
सुन पुकार कुमुद खिला

अंगार हो  रही धरती 
धैर्य थी धारण किए 
दहकती ज्वाला गिरती
अडिगता का प्रण लिए 

मुरझा गए पुष्प तरू  
मोर मैना थे उदास 
सोचती थी क्या करूँ 
जाए बुझ इसकी प्यास 

सूख गए नदी नार 
ताल तलैया गए रीत 
मछलियाँ पड़ी कगार 
गाये कौन सरस गीत 

टिमटिम उदासी का दीया  
आई ये कैसी रवानी 
हल ने मुख फेर लिया 
पगडण्डी छाई वीरानी    

घन छाये घनघोर बरस 
तृप्ति का उपहार लिए 
इन्द्रधनुष दे जाओ दरस 
रंगों का मनुहार लिए