ऐ ! मेरे मन की मैना
तनिक जाओ उनके संग
जब बैठे हों फुर्सत में
थोडा करना उनको तंग
नींद न आये जब उनको
एक मीठा गीत सुना देना
फिर भी यदि उदासी हो
निज पंखों से सहला देना
जब सोये हों कमल सेज
सिरहाने जाकर रहना
सपनों का जब पलटे पेज
मूरत मेरी बनकर रहना
घुंघुराली अलकें जब मचले
गालों से उन्हें हटा देना
नैनों में छाई खुमारी को
अँखियाँ अपनी में भर लेना
उजास भोर में उठें अधीर
तुम समझाना देना धीर
यदि किसी बात से हों आहत
सब हर लेना उनकी पीर
जाएँ जब अपनी अमराई
शाखों पर तुम जाना झूल
कूक कूक कर उन्हें रिझाना
याद रहे न सब कुछ भूल
लिखने बैठें जब पाती
कलम उठाकर लाना तुम
ज्यों लिखें ढाई आखर
हया से मर न जाना तुम .
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ||
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई ||
बहुत बढि़या ...।
ReplyDeleteati uttam
ReplyDeletekya kahne hain...bahut pyari si kavita!
ReplyDeleteलिखने बैठें जब पाती
ReplyDeleteकलम उठाकर लाना तुम
ज्यों लिखें ढाई आखर
हया से मर न जाना तुम.
प्रेम में प्रतीकों के माध्यम से सुंदर संवाद स्थापित करने का प्रयास सार्थक हुआ सुंदर रचना के जन्म के रूप में.
वाह, काश, मनभावों का संप्रेषण इतना प्रभावी हो जाये।
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteअधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
लिखने बैठें जब पाती
ReplyDeleteकलम उठाकर लाना तुम
ज्यों लिखें ढाई आखर
हया से मर न जाना तुम
सुन्दर लुभावनी रचना .. प्रतीक जीवंत
behad sunder , badhai
ReplyDeletesadar
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteगहरे भाव।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति।
वाह! बड़ी प्यारी कविता....
ReplyDeleteसादर...
bhaut hi pyari rachna.....
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