Wednesday, September 15, 2010

पतझड़ की तरह

हथेलियों में भर दूं तुम्हारी
सरसों के फूल
और तुम्हारे कानों में कहूं
वसंत आ गया है ।

चाहता हूँ गेहूं की बालियों से
गूँथ दूं तुम्हारे केश
और तुम्हारे कानों में कहूं
वसंत आ गया है ।

साख से झड़ते
पत्ते रख दूं तेरे क़दमों में
और तुम्हारे कानों में पूछूं
वसंत के बाद यूं पतझड़ की तरह
ठुकरा तो नहीं दोगी ।

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