Sunday, May 30, 2010

स्पर्श

मृदुल स्पर्श मुस्कान मोहिनी
मन को बहुत लुभाती है
बंद नयन स्वपन में भी
सोयी चाहत सहलाती है .

रेशम धागे सा प्रेमपाश
चाबुक काम न आता है
उनका छूना हौले हौले
दिल को भी छू जाता है .

स्पर्श देह का नेह नहीं
ह्रदय भी नम हो जाता है
मन से मन का मेल नहीं
भाव भी कम हो जाता है .

मेल मिलाप से परे हो तुम
धड़कन का है आना जाना
गहन स्पंदन बसे हो तुम
दूर नहीं तुम बस जाना .

राह निहारेंगे दो लोचन
सन्देश समीर पहुंचाएगी
जब साथ रहेगी तन्हाई
याद बहुत फिर आएगी .

3 comments:

  1. स्पर्श देह का नेह नहीं
    ह्रदय भी नम हो जाता है
    मन से मन का मेल नहीं
    भाव भी कम हो जाता है .

    bahut umda rachna hai...

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  2. सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

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  3. बेहद सुन्दर और कोमल अभिव्यक्ति को वैसे ही अभिव्यक्त किया ...सादर

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