पसर गया है
मन के भीतर
बाहर भी
तुम जो नहीं हो पास
उदासी के घन
घिर आये हैं
अँधेरा फैला है
चारों ओर
सूरज तुम
छिप गए हो उसकी ओट
वैराग्य सा
समाता जा रहा है
आत्मा में
विरक्ति आसीन
हो रही है
वसंत तुम
कब आओगे लेकर आसक्ति
मोह सा
बढ़ता जा रहा है
जीवन से
इन्द्रियां सभी
अनियंत्रित हो रही हैं
विवेक तुम
कहाँ हो चुराकर चेतना.
उत्तम...भावपूर्ण...
ReplyDeleteमन का खालीपन संसार का सुख भी नहीं भर सकता है।
ReplyDeleteमोह सा
ReplyDeleteबढ़ता जा रहा है
जीवन से
इन्द्रियां सभी
अनियंत्रित हो रही हैं
विवेक तुम
कहाँ हो चुराकर चेतना.
Kya gazab kee rachana hai!
वैराग्य सा
ReplyDeleteसमाता जा रहा है
आत्मा में
विरक्ति आसीन
हो रही है
वसंत तुम
कब आओगे लेकर आसक्ति ... akelapan asahya hai , tum aao to
वैराग्य सा
ReplyDeleteसमाता जा रहा है
आत्मा में
विरक्ति आसीन
हो रही है
वसंत तुम
कब आओगे लेकर आसक्ति
खूबसूरत भावों से सजी सुन्दर रचना
वैराग्य सा
ReplyDeleteसमाता जा रहा है
आत्मा में
विरक्ति आसीन
हो रही है
वसंत तुम
कब आओगे लेकर आसक्ति
विवेक और वैराग्य के द्वन्द का सटीक चित्रण.
kab aaoge tum!!:)
ReplyDeletesach me aana hi hoga..!!
hamare blog pe aayen!
मोह सा
ReplyDeleteबढ़ता जा रहा है
जीवन से
इन्द्रियां सभी
अनियंत्रित हो रही हैं
विवेक तुम
कहाँ हो चुराकर चेतना.
utam ati utam
मोह और वैराग्य का अंतर्द्वन्द
ReplyDeleteमोह सा
ReplyDeleteबढ़ता जा रहा है
जीवन से
इन्द्रियां सभी
अनियंत्रित हो रही हैं
प्रेम में चेतना नही रहती ... बहुत ही अच्छा लिखा है ...
मोह सा
ReplyDeleteबढ़ता जा रहा है
जीवन से
इन्द्रियां सभी
अनियंत्रित हो रही हैं
प्रेम में चेतना नही रहती .
अंतर की व्यथा को उजागर करती हुई रचना बहुत ही सुंदर लगी. आभार.
अत्युत्तम प्रभावशाली अभिव्यक्ति ! आमंत्रण में एक आग्रहपूर्ण कशिश है ! बहुत सुन्दर रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें !
ReplyDeleteवाह !कितनी अच्छी रचना लिखी है आपने..! बहुत ही पसंद आई
ReplyDeleteव्यथा नि:शब्द कर गयी .....
ReplyDeleteमोह सा
ReplyDeleteबढ़ता जा रहा है
जीवन से
इन्द्रियां सभी
अनियंत्रित हो रही हैं
प्रेम में चेतना नही रहती
सुन्दर रचना.बधाई
बहुत ही गुढ़ बात कही है आपने आज..बढ़िया।
ReplyDeletemanobhavon ke antardwand ki sarthak prastuti.
ReplyDeleteएक अद्भुद कविता है यह... चेतना का अनियंत्रित होना बढ़िया विम्ब है... इस प्रेम गीत के लिए शुभकामना... प्रतीक्षा है और भी कविताओं की....
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