शब्द पिरोये बिना भाव के
कहाँ से भर दूं प्राण
बिना चाँद और तारों के अम्बर भी है निष्प्राण
मन के आँगन उतरी
गौरैया भी है निराश
छलकी जाए नैन गगरी
कैसा आया संत्रास
अन्दर बाहर फैला है
स्याह अँधेरा पास
लग रहा है इन दिनों
अमावस्या का है वास
जुगनू ने भी है ठानी
भर दूं पथ प्रकाश
मन की किसने है जानी
जीवन में भरी आस सुन लो सूरज और चांदनी
तुम बैठे हो आकाश
तुमको है एक डोर बांधनी
प्रिय आयें लेकर अवकाश
सुन लो सूरज और चांदनी
ReplyDeleteतुम बैठे हो आकाश
तुमको है एक डोर बांधनी
प्रिय आयें लेकर अवकाश
-भावपूर्ण.
कमेंट्स चाहे न दे पाऊं,पर पढ़ती हूँ नियमित आपको,आपकी कविताओ को.
ReplyDeleteसुन लो सूरज और चांदनी
तुम बैठे हो आकाश
तुमको है एक डोर बांधनी
प्रिय आयें लेकर अवकाश ' कैसी डोर बांधेंगे दोनों?सूरज आग बरसाने वाला ....तो चांदनी ठंडी ठंडी लहर दौड़ा देती है सारे माहोल में.ओह न ठंडक न तपन ...बीच का मधुर मौसम ! प्रिय के आगमन पर इससे सुंदर और क्या हो सकता है?सुन्दर भावानुभूति सुन्दर भावाभिव्यक्ति !
शब्द पिरोये बिना भाव के
ReplyDeleteकहाँ से भर दूं प्राण
बिना चाँद और तारों के
अम्बर भी है निष्प्राण.
सुंदर भावों से सुसज्जित रचना.
एकाकी मन की भावुक अब्भिव्यक्ति।
ReplyDeleteachhi abhivyakti
ReplyDeleteभावो का बहुत ही सुन्दर समन्वय्।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना!
ReplyDeleteबिम्बों के माध्यम से बहुत कुछ कह दिया है आपने!
अहा, बड़ी सुन्दर प्रेम अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteमन के एकाकी भावों को सॅंजो कर लिखी रचना ... सुंदर है ...
ReplyDeleteअन्दर बाहर फैला है
ReplyDeleteस्याह अँधेरा पास
लग रहा है इन दिनों
अमावस्या का है वास
बहुत सुन्दर रचना.....
बहुत सुन्दर रचना! सुन्दर भावानुभूति भावाभिव्यक्ति !
ReplyDeleteसुन लो सूरज और चांदनी
ReplyDeleteतुम बैठे हो आकाश
तुमको है एक डोर बांधनी
प्रिय आयें लेकर अवकाश
very nice
सुन लो सूरज और चांदनी
ReplyDeleteतुम बैठे हो आकाश
तुमको है एक डोर बांधनी
प्रिय आयें लेकर अवकाश bahut sunder...