Wednesday, May 4, 2011

पुकार




दो फूल 
आस पास थे 
लाल रंग उनका 
खिल रहा था 

एक  भंवरा  
आस पास था 
रंग सुर्ख चटक 
लुभा रहा था 

एक तितली 
उड़ कर आई 
खिला हुआ सुमन 
बुला रहा था 

पुष्प के माथे 
झिलमिल करता 
ओस का मोती 
सजा रहा था 

खिली थी 
और भी कलियाँ 
पर यह फूल 
मुस्कुरा रहा था 

कहते थे 
उसके पराग 
कब  आओगे 
रास्ता देख रहा था 

उसकी पुकार 
तोड़ लेना मुझे 
देना उनको 
जो मन के करीब था .

13 comments:

  1. इस बहुत सुन्दर दिलकश रचना के लिए बधाई स्वीकारें
    नीरज

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  2. बहुत सुन्दर अन्दाज़-ए-बयाँ।

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  3. बहुत सुन्दर शब्दो को चुन-चुन कर कविता की माला में पिरोया है आपने!

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  4. बहुत बढ़िया....

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  5. वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा

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  6. बहुत सुन्दर कोमल प्रेम भाव

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  7. achha laga aapki rachna ko padhkar, yunhi likhte rahiye.

    shubhkamnayen

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  8. फूलों सी ही सुन्दर कविता !

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  9. उसकी पुकार
    तोड़ लेना मुझे
    देना उनको
    जो मन के करीब था

    very nice

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  10. उसकी पुकार
    तोड़ लेना मुझे
    देना उनको
    जो मन के करीब था .

    बहुत सुन्दर भाव। बधाई।

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