Wednesday, May 25, 2011

छिपा मीत





तुम्हारी आँखों सा  
बसा जो समंदर है
मेरे भावों की नदी सा  
बहता कलकल है

तुम्हारे आँचल में 
बसा जो आकाश है 
मेरे सपनों के सितारों से
झरता झिलमिल है 

तुम्हारे हाथों में 
बनी  जो लकीरें हैं 
मेरे भाग्य की रेखाओं से 
जाकर मिलती  हैं 

तुम्हारे अधरों में 
छिपा जो गीत है 
मेरे ह्रदय के तारों से 
उपजा संगीत है  

तुम्हारे पाँवों में 
बंधी जो पायल है 
सुनने को रुनझुन 
मन पागल है 

तुम्हारी अलकों में 
उलझी जो लट है 
सुलझाने को व्याकुल 
उलझने की रट है 


तुम्हारे  शब्दों में
छिपा जो मीत है 
कोई और तो नहीं 
तुम्हारा मनमीत है  .

14 comments:

  1. प्रेम में सराबोर-- श्रृंगार की सुन्दर, भावपूर्ण रचना.....

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  2. tum to sab hai...tumahe me sab kuchh k has hai ...hai na..:)

    bahut pyari rachna..

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  3. सुन्दर और भावपूर्ण रचना के लिए बधाई!

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  4. namskaar !
    prem abhivyalti ki sunder rachna .badhai .
    sadhuwad
    saadar

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  5. तुम्हारे अधरों में
    छिपा जो गीत है
    मेरे ह्रदय के तारों से
    उपजा संगीत है

    bhaut sundar, toh aaj kal ghar per ye he hoo raha hai

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  6. बहुत सुन्दर मधुर प्रेम से सरा बोर प्रस्तुति

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  7. तुम्हारे अधरों में
    छिपा जो गीत है
    मेरे ह्रदय के तारों से
    उपजा संगीत है
    यह बात सही है| बहुत खूब! बधाई

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  8. सुन्दर रचना...

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  9. तुम्हारे अधरों में
    छिपा जो गीत है
    मेरे ह्रदय के तारों से
    उपजा संगीत है
    Kitne komal bhaav hain!

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  10. बहुत सुन्दर और प्रवाहमयी रचना!

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  11. बहुत अच्छी लगी यह कवितआ।

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  12. तुम्हारे अधरों में
    छिपा जो गीत है
    मेरे ह्रदय के तारों से
    उपजा संगीत है

    bhaut sundar, toh aaj kal ghar per ye he hoo raha hai

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  13. क्या लिखू? प्रिय की छवि स्पष्ट नही दिख रही.यहाँ तो प्रियतमा को संबोधित किया प्रतीत होता है. भला क्यों? समझाओगी?

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