बहुत निर्मल
गिरती जिस पर
करती पावन
फूलों पर
मोती बिखराती
पत्तों पर भी
रूप सजाती
आँख खुले
पलकों सजती
प्रकृति में
शीतलता भरती
बांह पसारे
ह्रदय लगाती
कल फिर आऊंगी
कानों में कहती
नभ से गिरती
और फिसलती
नव दिन की
आशा भरती
स्वयं कहती
एक कहानी
आना मिटना
जीवन की रवानी
क्षणभंगुर है
अपना उपवन
मधुमय करता
इसका लघु जीवन .