Thursday, March 10, 2011

जड़




मोहित करता पुष्प सुगन्धित 
या घनी छाँव सा हो बरगद 
मीठे फल से लदा आनंदित 
शीतल हवा सा  हो गदगद 

कंदमूल से झुके तरू बल  
पथिकों को बहुत लुभाते है 
लहराते महकाते कुसुम दल
दिल का सब हाल बताते  है

माथे पर रखकर पाषाण 
पाताल से अमृत ले आऊं 
धरा के गर्भ में रहूँ छिपी 
हर कली को पोषण दे आऊं 

पृथ्वी में जब पड़ा बीज 
फैला दी मैंने बाहें अपनी  
ममता से उसे सींच सींच 
अंकुर को दी छवि अपनी

नन्हा सा पौधा भेज दिया 
स्वयं अपनी राह बनाने को
तूफानों से मत घबराना 
मैं हूँ अस्तित्व बचाने को 

आयें जाएँ जितने मौसम 
हवा का रुख तुम पहचानो 
बदल लो चाहे कितने रूप 
मुझ से जुड़े हो यह जानो 

अवसान  नहीं आने दूगी
सुवासित पुष्पित खिले रहो  
सृष्टि की आन बचा लूंगी 
तुम बस जड़ से जुड़े रहो  .  

16 comments:

  1. मैं ज़रूरी काम में व्यस्त थी इसलिए पिछले कुछ महीनों से ब्लॉग पर नियमित रूप से नहीं आ सकी!
    बहुत बढ़िया लिखा है आपने ! उम्दा प्रस्तुती!

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  2. सृष्टि की आन बचा लूंगी
    तुम बस जड़ से जुड़े रहो .

    सुन्दर सन्देश देती रचना

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  3. Bahut saarthak sandesh chipa hai is rachna mein ... sundar rachna ...

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  4. बहुत उम्दा सोच और अभिव्यक्ति!

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  5. बहुत सुन्दर रचना, बधाई.

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  6. जड़ की महत्ता और पौधे के अस्तित्व को बनाए रखने,वृक्ष का रूप देने में उसकी भूमिका को बहुत सुन्दर ढंग से उकेरा है.
    जड़ों से जुड़े रहने वाले व्यक्ति भी दुनिया और जीवन की आपाधापी में अपने अस्तित्व को बनाए रखते हैं. है ना?
    वृक्ष और उसकी जड़ें स्वयम अपने आप में एक दर्शन-ग्रन्थ है.
    सुन्दर रचना के लिए................?????? प्यार और शुभकामनाएं बधाई के साथ.

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  7. • कविता जीवन के अनेक संदर्भों को उजागर करने का सयास रूपक है।

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  8. जड़ों से जुड़ा हुआ व्यक्ति गिरकर संभलने की हिम्मत और हौसला भी रखता है !
    सार्थक अभिव्यक्ति !

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  9. बेहतरीन संदेश, सब जड़ों से जुड़े रहें।

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  10. सृष्टि की आन बचा लूंगी
    तुम बस जड़ से जुड़े रहो .
    आत्मविश्वास जगाती प्रेरना देती पाँक्तियाँ। बधाई सुन्दर रचना के लिये।

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  11. नन्हा सा पौधा भेज दिया
    स्वयं अपनी राह बनाने को
    तूफानों से मत घबराना
    मैं हूँ अस्तित्व बचाने को

    आयें जाएँ जितने मौसम
    हवा का रुख तुम पहचानो
    बदल लो चाहे कितने रूप
    मुझ से जुड़े हो यह जानो

    अवसान नहीं आने दूगी
    सुवासित पुष्पित खिले रहो
    सृष्टि की आन बचा लूंगी
    तुम बस जड़ से जुड़े रहो .
    Wow! Kya gazab likha hai! Kaash kabhee mai bhi istarah likh paaun!
    Kabhee mere blog pe bhee padharen...khushee hogee!

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  12. सबका बहुत बहुत आभार . उत्साह वर्धक टिप्पनी के लिये .

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  13. जड़ के बहाने आपने एक सांस्कृतिक रचना रच डाली है .. बहुत सुन्दर कविता

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  14. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 15 -03 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.uchcharan.com/

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  15. जड़ के माध्यम से शिखर कि बातें करती हुयी एक सुन्दर कविता.

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  16. बहुत सुंदर प्रस्तुति, धन्यवाद

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