धरती इक माँ सी मनभाई
पिता सा अम्बर का विस्तार
सृष्टि सारी इन्हीं में समाई
जग के हैं ये दो आधार
अदभुत कृत्य हैं विधना के
रचा जिसने सारा संसार
दोनों पूरक एक दूजे के
समझाते जीवन का सार
बहस हो जाती गाहे बगाहे
दोनों में है कौन महान
आकाश पसारे अपनी बाहें
धरा कहे हूँ मैं बलवान
नीलगगन सा छत्र अपार
देता सबको सुख छाया है
पृथ्वी देती ठोस आधार
उससे ही जीवन आया है
जननी के आँचल सी भूमि
सृष्टा बनी है प्रकृति की
नभ देता सहयोग मनोरम
पूर्णता करता धरती की
एक दूजे के बिना अधूरे
साथी है सुख दुःख के
दोनों ही करते प्रतीक्षा
आयेंगे पल राग रंग के
झुक कर करे प्रणय निवेदन
कर लो स्वीकार सखा मेरी
मिलन हमारा फिर होगा
देखूँगा राह क्षितिज पर तेरी
गोधूलि पर मिलेंगे जब
दिल का हाल बता देना
भेजूंगा पावस के मोती
उपहार समझ रख लेना.
एक दूजे के बिना अधूरे
ReplyDeleteसाथी है सुख दुःख के
sundar rachna
गोधूलि पर मिलेंगे जब
ReplyDeleteदिल का हाल बता देना
भेजूंगा पावस के मोती
उपहार समझ रख लेना.
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति।
धरती इक माँ सी मनभाई
ReplyDeleteपिता सा अम्बर का विस्तार
सृष्टि सारी इन्हीं में समाई
जग के हैं ये दो आधार
kya kahne hai...maa-papa ko kya shabd diya aapne:)
kabhi kabhi hamare blog pe bhi darshan de diya karen...:D
ReplyDeleteummido sahit!
धरती इक माँ सी मनभाई
ReplyDeleteपिता सा अम्बर का विस्तार
सृष्टि सारी इन्हीं में समाई
जग के हैं ये दो आधार.
सुंदर भाव लिए उत्कृष्ट रचना.
kya baat kya baat kya baattttttttttttttttt
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी कविता ! इतनी खूबसूरत एवं कोमल सी रचना के लिये बहुत-बहुत बधाई एवं होली की ढेर सारी शुभकामनायें !
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