शीघ्र आने को कह गए
अब तक लौट न आये तुम
वसंत अनगिन बीत गए
कब तक राह निहारें हम
कोयल कूक कूक थकती
पपीहा भी हो गया मौन
काक न लाया कोई पाती
गौरैया पूछे आएगा कौन
नाम तुम्हारा रटे सुगना
हर आहट पर आँखें खोल
खनखन से दूर हुआ कंगना
चुक गए हैं उसके बोल
विरहणी की है पीर भली
है कोई तो संग निभाने को
बरसे सावन या झडे पतझड़
ये सब हैं दुःख बतियाने को
ममता की मूरत को देखो
है पुत्र विरह में बौराई
ह्रदय कसकता है उसका
वह जाने प्रेम की गहराई
मुझसे ज्यादा दीन दुखी
दर्द मेरा बौना उससे
घर की दीवारें खोज रहीं
उज्जवल हर कोना उससे
दीपक हो जिस जीवन का
उनकी तो सुधि ले लेना
रीतापन हरना आँचल का
नैनों में उजास भरना .