पूछे सखियाँ मन की बात
कहो प्रिये क्या है राज
कहने में लाज आती
मैं छुईमुई हो जाती
दर्पण में निहारती
स्वयं को संवारती
देख उसमें उनकी छवि
मैं छुईमुई हो जाती
अलकें उलझ जाती
कैसे मैं सुलझाती
हर लट याद दिलाती
मैं छुईमुई हो जाती
गालों की लाली
और सुर्ख हो जाती
खुशबू तुम्हारी महकाती
मैं छुईमुई हो जाती
प्रतीक्षा में रहती
नजरें राह तकती
आती उनकी पाती
मैं छुईमुई हो जाती
आने की आहट
मन को हर्षाती
धड़कन बढ़ जाती
मैं छुईमुई हो जाती
धड़कन बढ़ जाती
मैं छुईमुई हो जाती
बदरी गहराती काली
गर्जना मेघ की डराती
बरखा मन भिगो जाती
मैं छुईमुई हो जाती .
आने की आहट
ReplyDeleteमन को हर्षाती
धड़कन बढ़ जाती
मैं छुईमुई हो जाती
बदरी गहराती काली
गर्जना मेघ की डराती
बरखा मन भिगो जाती
मैं छुईमुई हो जाती.
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एक साँस में ही पूरी रचना पढ़ गया!
छुईमुई का बहुत सुन्दर प्रयोंग किया है आपने इस रचना में!
उम्दा...बेहतरीन..
ReplyDeletechhui mui si kavita....:)
ReplyDeletebehtareen!
Beautiful as always.
ReplyDeleteIt is pleasure reading your poems.
बदरी गहराती काली
ReplyDeleteगर्जना मेघ की डराती
बरखा मन भिगो जाती
मैं छुईमुई हो जाती.
बेहतरीन कविता ने मन के भावों को छुईमुई कर दिया.
पूछे सखियाँ मन की बात
ReplyDeleteकहो प्रिये क्या है राज
कहने में लाज आती
मैं छुईमुई हो जाती
kya baat hai, very nice
देख कर दर्पण में उनकी छवि छुई मुई हो जाती ..
ReplyDeleteखुद में जो देखी छवि पिया कि तो स्वाभाविक थी ये अदाएं ..
सुन्दर भावाभिव्यक्ति !
सुन्दर प्रेम प्रस्तुति।
ReplyDeleteयदि समय हो तो आज का चर्चा मंच भी देख ले!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति... चर्चामंच में आज आपकी रचना और आपका परिचय देखा ... यह मैं छुईमुई हो जाती जैसी रचना दिल को भा गयी..
ReplyDeletekomal bhav....
ReplyDeleteसुन्दर प्रेम प्रस्तुति।
ReplyDeleteबदरी गहराती काली
ReplyDeleteगर्जना मेघ की डराती
बरखा मन भिगो जाती
मैं छुईमुई हो जाती .
खूबसूरत कविता के लिए आपको बधाई...