Wednesday, April 20, 2011

छुईमुई


पूछे सखियाँ मन की बात
कहो प्रिये क्या है राज  
कहने में लाज आती  
मैं छुईमुई हो जाती 

दर्पण में  निहारती 
स्वयं को संवारती 
देख उसमें उनकी छवि 
मैं छुईमुई हो जाती 

अलकें उलझ जाती 
कैसे मैं सुलझाती 
हर लट याद दिलाती 
मैं छुईमुई हो जाती 

गालों की लाली 
और सुर्ख हो जाती
खुशबू तुम्हारी महकाती 
मैं छुईमुई हो जाती 

प्रतीक्षा में रहती 

नजरें राह तकती 
आती उनकी पाती
मैं छुईमुई हो जाती

आने की आहट 
मन को हर्षाती 
धड़कन बढ़ जाती 
मैं छुईमुई हो जाती 

बदरी गहराती काली
गर्जना मेघ की डराती
बरखा मन भिगो जाती 
मैं छुईमुई हो जाती .

13 comments:

  1. आने की आहट
    मन को हर्षाती
    धड़कन बढ़ जाती
    मैं छुईमुई हो जाती

    बदरी गहराती काली
    गर्जना मेघ की डराती
    बरखा मन भिगो जाती
    मैं छुईमुई हो जाती.
    --
    एक साँस में ही पूरी रचना पढ़ गया!
    छुईमुई का बहुत सुन्दर प्रयोंग किया है आपने इस रचना में!

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  2. उम्दा...बेहतरीन..

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  3. Beautiful as always.
    It is pleasure reading your poems.

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  4. बदरी गहराती काली
    गर्जना मेघ की डराती
    बरखा मन भिगो जाती
    मैं छुईमुई हो जाती.

    बेहतरीन कविता ने मन के भावों को छुईमुई कर दिया.

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  5. पूछे सखियाँ मन की बात
    कहो प्रिये क्या है राज
    कहने में लाज आती
    मैं छुईमुई हो जाती

    kya baat hai, very nice

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  6. देख कर दर्पण में उनकी छवि छुई मुई हो जाती ..
    खुद में जो देखी छवि पिया कि तो स्वाभाविक थी ये अदाएं ..
    सुन्दर भावाभिव्यक्ति !

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  7. सुन्दर प्रेम प्रस्तुति।

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  8. यदि समय हो तो आज का चर्चा मंच भी देख ले!

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति... चर्चामंच में आज आपकी रचना और आपका परिचय देखा ... यह मैं छुईमुई हो जाती जैसी रचना दिल को भा गयी..

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  10. सुन्दर प्रेम प्रस्तुति।

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  11. बदरी गहराती काली
    गर्जना मेघ की डराती
    बरखा मन भिगो जाती
    मैं छुईमुई हो जाती .
    खूबसूरत कविता के लिए आपको बधाई...

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