जिन्दगी ने कुछ यूं ही बांटे
कभी दिए फूल
तो कभी कांटे
कभी दिखाया
झिलमिल अर्श
तो कभी बैठाया
खाली फर्श
भर दी कुछ
आँखों में स्याही
पलकें भी गई
जुगनू से ब्याही
बैचैन था बहुत
मिला अमलताश
प्रतीक्षा में रहा
सुर्ख सा पलाश
रूकना तुम नहीं
चलते जाना राही
ठहरना वहीँ
जाओ जहाँ चाही
दरिया की जैसे
एक तुम लहर
कैसे कटेगा जीवन
न बीते प्रहर
जिन्दगी ने दिया
अनुभव अनूठा
खुशियाँ हैं जाती
दिखाती अगूंठा .
जेठ की तपती दुपहरी
धरा थी शुष्क दग्ध
मेघ आये ले सुनहरी
पावस की बूंदे लब्ध
संचार सा होने लगा
जी उठी जीवन मिला
सोया हुआ पंछी जगा
सुन पुकार कुमुद खिला
अंगार हो रही धरती
धैर्य थी धारण किए
दहकती ज्वाला गिरती
अडिगता का प्रण लिए
मुरझा गए पुष्प तरू
मोर मैना थे उदास
सोचती थी क्या करूँ
जाए बुझ इसकी प्यास
सूख गए नदी नार
ताल तलैया गए रीत
मछलियाँ पड़ी कगार
गाये कौन सरस गीत
टिमटिम उदासी का दीया
आई ये कैसी रवानी
हल ने मुख फेर लिया
पगडण्डी छाई वीरानी
घन छाये घनघोर बरस
तृप्ति का उपहार लिए
इन्द्रधनुष दे जाओ दरस
रंगों का मनुहार लिए
जिद तुम्हारी
संसार को बताऊँ
इच्छा मेरी
मन ही में छिपाऊँ
चाहो तुम
बरस बरस जाऊं
मैं चाहूं
सीप में मोती बसाऊँ
कहो तुम
हर पल सजाऊँ
मैं कहती
दर्पण छिपाऊँ
मांगों तुम
बिछ बिछ जाऊं
मेरा सपना
माथे सजाऊँ
मंशा तुम्हारी
बलिहारी जाऊं
मन कहता
मैं वारी जाऊं
तुम चाहो
अलकों से उलझना
मैं चाहूं
उलझन से निकलना
लाना चाहो
चाँद हथेली
मैं न बूझूं
ये अबूझ पहेली .
बीते जीवन कैसे मेरा तुम बिन
रहती हो जैसे
पानी बिन मीन
दूर देस में
पड़ा है जाना
स्मृति बस्ती में
है आना जाना
विस्थापित सा
नहीं लगता मन
सखा प्रिय सा
हुआ है मौन
कौन सवारें
बागी लट को
फिरे दुआरे
ढकती मुख को
कदम भी भूले
अपनी चाल
प्रतीक्षा में कोई
पूछे हाल
निशब्द कलम
न लिखती पाती
उनसे दूरी
बहुत रुलाती
कर्म भूमि है
काम है पूजा
खुद ही बढ़ना
साथ न दूजा .