जिद तुम्हारी
संसार को बताऊँ
इच्छा मेरी
मन ही में छिपाऊँ
चाहो तुम
बरस बरस जाऊं
मैं चाहूं
सीप में मोती बसाऊँ
कहो तुम
हर पल सजाऊँ
मैं कहती
दर्पण छिपाऊँ
मांगों तुम
बिछ बिछ जाऊं
मेरा सपना
माथे सजाऊँ
मंशा तुम्हारी
बलिहारी जाऊं
मन कहता
मैं वारी जाऊं
तुम चाहो
अलकों से उलझना
मैं चाहूं
उलझन से निकलना
लाना चाहो
चाँद हथेली
मैं न बूझूं
ये अबूझ पहेली .
आकांक्षाओं को गूंथ कर कविता कि रचना अत्यंत खूबसूरत है. बधाई.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteउम्दा लेखन,खूबसूरत अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteकमाल की प्रस्तुति.वाह वाह, क्या बात है.
खूबसूरत बिम्बों के प्रयोग ने कविता की संप्रेषणीयता को मोहक बना दिया है।
ReplyDelete...बेहतरीन कविता।
बहुत अच्छी प्रस्तुति है!
ReplyDeleteरक्षाबन्धन के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
bahut pyari see prastuti..:)
ReplyDeleteदो तट और बीच में बहती प्रेम की नदिया।
ReplyDeleteलाना चाहो
ReplyDeleteचाँद हथेली
मैं न बूझूं
ये अबूझ पहेली .
Wah! Behad khoobsoorat!
अबूझ पहेली ही तो है हर जीवन !.
ReplyDeleteअच्छी पंक्तियाँ!