Thursday, August 11, 2011

अबूझ पहेली
















जिद तुम्हारी 
संसार को बताऊँ 
इच्छा मेरी 
मन ही में छिपाऊँ 

चाहो तुम 
बरस बरस जाऊं 
मैं चाहूं 
सीप में मोती बसाऊँ 

कहो तुम 
हर पल सजाऊँ 
मैं कहती 
दर्पण छिपाऊँ 

मांगों तुम 
बिछ बिछ जाऊं 
मेरा सपना 
माथे सजाऊँ 

मंशा तुम्हारी 
बलिहारी जाऊं 
मन कहता 
मैं वारी जाऊं 

तुम चाहो 
अलकों से उलझना 
मैं चाहूं 
उलझन से निकलना 

लाना चाहो 
चाँद हथेली 
मैं न बूझूं 
ये अबूझ पहेली . 

10 comments:

  1. आकांक्षाओं को गूंथ कर कविता कि रचना अत्यंत खूबसूरत है. बधाई.

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  2. बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  3. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!!

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  4. उम्दा लेखन,खूबसूरत अभिव्यक्ति.
    कमाल की प्रस्तुति.वाह वाह, क्या बात है.

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  5. खूबसूरत बिम्बों के प्रयोग ने कविता की संप्रेषणीयता को मोहक बना दिया है।
    ...बेहतरीन कविता।

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  6. बहुत अच्छी प्रस्तुति है!
    रक्षाबन्धन के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  7. दो तट और बीच में बहती प्रेम की नदिया।

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  8. लाना चाहो
    चाँद हथेली
    मैं न बूझूं
    ये अबूझ पहेली .
    Wah! Behad khoobsoorat!

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  9. अबूझ पहेली ही तो है हर जीवन !.
    अच्छी पंक्तियाँ!

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