अख़बार के सच को
जानता हूँ मैं
हवा के रुख को
पहचानता हूँ मैं ।
लहरों के थपेड़े से
टूट जायेगी नाव
डरकर रुकना नहीं
जानता हूँ मैं ।
सेंध लगा रहा हूँ
मैं सरे-बाजार
परदे में रहना
जानता हूँ मैं ।
उनकी आँखों का नशा
करता है बेकाबू
मन पर काबू करना
जानता हूँ मैं ।
हकीकत होती है
बहुत कड़वी मगर
जहर को पीना
जानता हूँ मैं ।
नहीं आएगी उनको
मेरी याद मगर
उनकी याद में
मरना जानता हूँ मैं ।
sundar..!!
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