Friday, August 27, 2010

प्रीत

फूलों के रथ पर
होकर सवार
आया है कोई
राजकुमार ।

देखो मिलने चला
अपनी महबूबा को
चुप चुप देखे
अपनी दिलरूबा को ।

बिठला के डोली
पलकों की छावं
सजी है गोरी
है रुनझुन पावं ।

लेकर चला
अपने द्वार
सतरंगी सपने
करते हैं इन्तजार ।

क्या वो करे
कुछ समझ न आये
किससे कहे
जिया का वो हाल ।

देखे जो उसको
तो लब सी जाये
मन की उलझन
कर दे बेहाल ।

बातों ही बातों में
नैना भर आये
आँखों ही आँखों में
रैना बीती जाए ।

क्या यही है 'प्रीत '
कोई तो बताये
इस पागल दिल को
कोई तो समझाए ।

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