Monday, August 2, 2010

तुम्हारा संग

अभिनव आनंद तुम्हारा संग
निकटता तेरी बरगद छाँव
धूल धूसरित पगडण्डी पर
ढूंढ़ रहे हैं तेरे पाँव।


पराग सा महक रहा है
मोहक सिन्दूरी रंग
मुस्कान तेरी से रहे सुवासित
मन आँगन सतरंग ।


कहाँ चले गए तुम
मुझे छोड़ मझधार
नजरें ढूंढ रही हैं तुझको
हर खिड़की हर द्वार ।

हर दिन हर पल रखते
अपने नैनों की परिधि में
किसको ढूंढेंगे नयन बावरे
आसपास और स्मृति में ।


नाज उठाओगे किसके
पलकों पर किसे झुलाओगे
भेज दिया है दूर मुझे
कंठ से किसे लगाओगे ।


अधर पंखुरी खिलेगी कैसे
किसे देख रश्मि उतरेगी
पहाड़ सा दिन बीतेगा कैसे
कैसे लम्बी रात ढलेगी ।


तुम से दूर किया किस्मत ने
दिल से दूर न कर पाएगी
जाने को मना किया मन ने
पर याद बहुत फिर आएगी.

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