हौले से दस्तक दी तुमने
खुल गए ह्रदय के द्वार
मन पंछी लगा उड़ने
आया सपनों का राजकुमार ।
पुष्प खिले शरमाई कलियाँ
महकी हवा पर लिए आग
भ्रमर ने गुंजित की गलियां
तितली ने छेड़ा प्रेम राग ।
सोने सा बिखरा पराग
शहजादी परियों की भागे
इच्छाधारी पंख लगाये
उन्मुक्त गगन से आगे .
सोने सा दिन चाँदी रातें
हिलोर तरंगित तन मन में
बाहें झूला मीठी बातें
खिले पलाश चन्दन वन में .
समय चक्र की धुरी घूमे
मौन था सब देख रहा
थरथराते कदम धरा चूमे
स्वपन सलोना रूठ गया .
दीये के पीछे अँधियारा
उसकी लौ पर कहाँ छाये
बाती बिन कहाँ जले दीया
क्यों तुम समझ न पाए .
दीये के पीछे अँधियारा
ReplyDeleteउसकी लौ पर कहाँ छाये
बाती बिन कहाँ जले दीया
क्यों तुम समझ न पाए .
बेह्द उम्दा प्रस्तुति…………भावों को खूब सहेजा है।
बाती बिन कहाँ जले दीया ....गहरे भाव लिये, सुन्दर शब्द रचना ।
ReplyDeleteबहुत खूब !!!!! विश्लेषण बहुत जबरदस्त किया है., भाषा पर तो आपकी पकड़ वैसे भी मजबूत है.प्यार की चाशनी में पगे ये शब्द और भी मीठे हो गए.
ReplyDeleteदीये के पीछे अँधियारा
ReplyDeleteउसकी लौ पर कहाँ छाये
बाती बिन कहाँ जले दीया
क्यों तुम समझ न पाए .
bahut badhiyaa
सोने सा दिन चाँदी रातें
ReplyDeleteहिलोर तरंगित तन मन में
बाहें झूला मीठी बातें
खिले पलाश चन्दन वन में
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सुन्दर रचना!
बढ़िया विवेचना!