Wednesday, October 20, 2010

तुम समझ न पाए

हौले से दस्तक दी तुमने
खुल गए ह्रदय के द्वार
मन पंछी लगा उड़ने
आया सपनों का राजकुमार ।


पुष्प खिले शरमाई कलियाँ
महकी हवा पर लिए आग
भ्रमर ने गुंजित की गलियां
तितली ने छेड़ा प्रेम राग ।


सोने सा बिखरा पराग
शहजादी परियों की भागे
इच्छाधारी पंख लगाये
उन्मुक्त गगन से आगे .


सोने सा दिन चाँदी रातें
हिलोर तरंगित तन मन में
बाहें झूला मीठी बातें
खिले पलाश चन्दन वन में .


समय चक्र की धुरी घूमे
मौन था सब देख रहा
थरथराते कदम धरा चूमे
स्वपन सलोना रूठ गया .


दीये के पीछे अँधियारा
उसकी लौ पर कहाँ छाये
बाती बिन कहाँ जले दीया
क्यों तुम समझ न पाए .

5 comments:

  1. दीये के पीछे अँधियारा
    उसकी लौ पर कहाँ छाये
    बाती बिन कहाँ जले दीया
    क्यों तुम समझ न पाए .

    बेह्द उम्दा प्रस्तुति…………भावों को खूब सहेजा है।

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  2. बाती बिन कहाँ जले दीया ....गहरे भाव लिये, सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

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  3. बहुत खूब !!!!! विश्लेषण बहुत जबरदस्त किया है., भाषा पर तो आपकी पकड़ वैसे भी मजबूत है.प्यार की चाशनी में पगे ये शब्द और भी मीठे हो गए.

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  4. दीये के पीछे अँधियारा
    उसकी लौ पर कहाँ छाये
    बाती बिन कहाँ जले दीया
    क्यों तुम समझ न पाए .
    bahut badhiyaa

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  5. सोने सा दिन चाँदी रातें
    हिलोर तरंगित तन मन में
    बाहें झूला मीठी बातें
    खिले पलाश चन्दन वन में
    --
    सुन्दर रचना!
    बढ़िया विवेचना!

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