बहती सरिता सा जीवन
धार बहे कलकल करती
गिनता रहता यह उपवन
पल पल की आहुति देती ।
रेशम सी मखमली कभी
पथरीली कभी पहाड़ों सी
महासागर सी शांत कभी
अल्हड कभी नदी चंचल सी ।
धूप छाँव के मंजर में
दो पल को सुस्ता लेना
समय से धूमिल एक चेहरा
सुखद स्मृति दोहरा लेना ।
पगडण्डी पर जीवन की
हाथ थाम तुम चलना
राह पड़े जितने पोखर
संभलकर जरा निकलना ।
निर्झरनी सी आसपास
संग संगीत बन बजना
सुकोमल साया रहे पास
मन खनके जैसे कंगना ।
पलकों में सपने भर दूं
नहला दूं इन्द्रधनुष से
मस्तक पूरा चाँद बिठा दूं
भर दूं आँचल तारों से ।
दर्शन मेरा बना यही
अंतस अभिलाषा है मेरी
है जीवन का सार यही
अभिमान मेरा मुस्कान तेरी .
बेहद सुन्दर प्रस्तुति बिल्कुल कल कल करती नदिया जैसी……………सुखद अनुभुति।
ReplyDeleteदर्शन मेरा बना यही
ReplyDeleteअंतस अभिलाषा है मेरी
है जीवन का सार यही
अभिमान मेरा मुस्कान तेरी .
MAST...
है जीवन का सार यही
ReplyDeleteअभिमान मेरा मुस्कान तेरी .
सबका यही अभिलाषा होनी चाहिए।
पलकों में सपने भर दूं
ReplyDeleteनहला दूं इन्द्रधनुष से
मस्तक पूरा चाँद बिठा दूं
भर दूं आँचल तारों से ।
सुंदर और कोमल भाव लिए मनभावन रचना। जिसमें आशा है, आस्था है विश्वास है।
achi rachna lekar aaye hai aap..bhaut sukhd raha padhna
ReplyDeleteBeautiful as always.
ReplyDeleteIt is pleasure reading your poems.
आपके जीवन सार कविता का हर पैरा अलग अलग भाव देता है .. सभी भाव जीवन और प्रेम से जुड़े हैं.. पूरी कविता प्रेरित करती है.. उद्वेलित करती है.. बार बार पढने का मन करता है... आपकी कविता में ७० के दशक के शब्द हैं और संरचना भी... आपकी कविता पढ़ते हुए.. कवि और गीतकार गोपाल दास नीरज जी कुछ पंकितयां याद आ गई...
ReplyDelete"जीवन क्या?-तम भरे नगर में
किसी रोशनी की पुकार है,
ध्वनि जिसकी इस पार और
प्रतिध्वनि जिसकी दूसरे पार है,
सौ सौ बार मरण ने सीकर होंठ
इसे चाहा चुप करना,
पर देखा हर बार बजाती
यह बैठी कोई सितार है"..
शुभकामना सहित !
रेशम सी मखमली कभी
ReplyDeleteपथरीली कभी पहाड़ों सी
महासागर सी शांत कभी
अल्हड कभी नदी चंचल सी ।
bahut badhiyaa
पलकों में सपने भर दूं
ReplyDeleteनहला दूं इन्द्रधनुष से
मस्तक पूरा चाँद बिठा दूं
भर दूं आँचल तारों से
कोमल भाव लिए सुन्दर रचना।