Tuesday, March 29, 2011

तुम्हारे गीत के बोल











एक सुगंध
छोड़ गई हो तुम
जो बसी है
मेरे ह्रदय में
और प्रेरणा बन
सुबासित कर रही है
मेरा तन 
मन भी 


एक छवि 
भूल आई हो तुम 
मेरे ओसारे 
स्थापित है 
आँगन मेरे 
तुलसी की तरह 
सात्विक कर रही है 
मेरा घर 
द्वार भी 

एक दीया
दीप्त कर आई हो 
मेरे मंदिर में 
अभिमंत्रित कर 
प्रज्ज्वलित है  
सदभावना की तरह 
उसकी लौ 
मेरे अन्दर 
बाहर भी 

एक एहसास 
छोड़ आई हो 
हर कोने में 
भरा भरा सा है 
हर कोना 
सान्निध्य की तरह
जीवंत  है 
तुम्हारी उपस्थिति 
प्रत्येक  पल
हर  क्षण 

एक गीत 
गुनगुना आई हो 
मेरे जीवन में 
संगीत बज उठा है 
हर साज पर 
झंकृत है 
मन का हर तार 
तुम्हारे गीत के बोल 
सदैव गुनगुनाती हैं
मेरी आँखें  
अधर भी . 

5 comments:

  1. bhaut khub, kiske geet likh rahe hoo hame bhi bato madam

    ReplyDelete
  2. एक सुगंध..........
    एक छवि ..........
    एक दीया..............
    ..एक एहसास ..............
    एक गीत.................
    .... प्रेम में और क्या होना चाहेगा कोई.. बहुत सुन्दर कविता...

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर रचना...बधाई
    नीरज

    ReplyDelete
  4. हर रूप में तुम्हारी ही यादें।

    ReplyDelete
  5. सुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं. आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.

    ReplyDelete