Monday, April 4, 2011

प्रतीक्षा



क्यों इतनी बैचैनी लाती
प्रतीक्षा की निर्मम घड़ियाँ
चाहने से भी टूट न पाती
अनुराग भरी निर्मल लड़ियाँ   


क्या होती है एक  परीक्षा 
धीर भरे आकुल मन की 
या कि है कोई पैमाना 
माप सके ऊँचाई प्रेम की 


क्या इसमें श्रद्धा गहरी 
चिन्ता का सैलाब भरा
कुशल से होंगे मीत मेरे 
अँखियाँ चाहे देखूं जरा 

क्यों इसमें दूरी ज्यादा 
पल लगते युग जैसे 
लेकिन जब वो आ जाते 
समय लगाये पंख जैसे 

क्या होता है मौका एक
चिंतन मनन समीक्षा का
कहाँ कमी है चूक देख 
करूँ सुधार अपेक्षा का  

कितना विद्यमान है सार
रहकर दूर भी पास लगे
बरसों बरस हो जाएँ पार 
कल ही की तो बात लगे

अवलंबन की कड़ियाँ लम्बी 
दिन दूनी  बढती जाएँ 
प्रतीक्षा जितनी भी दम्भी  
आस में उम्र गुजर जाए .    

13 comments:

  1. अरे वाह!
    आपने बहुत उम्दा लिखा हैं!
    अब आपके यहाँ आना लगा रहेगा!
    --
    नव सम्वतसर-2068 की आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  2. प्रतीक्षा आसभरी होती है।

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  3. कितना विद्यमान है सार
    रहकर दूर भी पास लगे
    बरसों बरस हो जाएँ पार
    कल ही की तो बात लगे
    bahut hi bhawpurn

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  4. बहुत सुन्दर भाव.

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  5. कितना विद्यमान है सार
    रहकर दूर भी पास लगे
    बरसों बरस हो जाएँ पार
    कल ही की तो बात लगे...
    कुशल से होंगे मीत मेरे
    अँखियाँ चाहे देखूं जरा

    एक- एक पंक्ति ने मान मोह लिया ...
    बहुत सुन्दर ...
    नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें !

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  6. इन्तजार की घड़ियों का कुछ ऐसा ही आलम है.

    शुभ चैत्र नव वर्ष -बधाई एवं शुभकामनाएँ.

    समीर लाल

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  7. किसी किसी के जीवन में बस इंतजार रह जाता है... सुन्दर कविता...

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  8. क्यों इसमें दूरी ज्यादा
    पल लगते युग जैसे
    लेकिन जब वो आ जाते
    समय लगाये पंख जैसे ...

    अक्सर प्रेम में ऐसे ही होता है ... पर अपना बस भी नही होता ...

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  9. क्यों इतनी बैचैनी लाती
    प्रतीक्षा की निर्मम घड़ियाँ
    चाहने से भी टूट न पाती
    अनुराग भरी निर्मल लड़ियाँ
    Behad sundar rachana! Prem aur intezaar kaa to choli daaman kaa saath hota hai!

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  10. आदरणीय रामपति जी नमस्कार
    आज आपकी कविता पढ़ते पढ़ते ना केवल छायावादी युग के महान कवि और कवियत्री का स्मरण हो आया बल्कि अमेरिका के आधुनिक कवि जॉन बुराह की एक मशहूर कविता 'वेटिंग' याद आ गई... पढ़िए आप भी...
    "Serene, I fold my hands and wait,
    Nor care for wind, nor tide, nor sea;
    I rave no more 'gainst time or fate,
    For lo! my own shall come to me.

    I stay my haste, I make delays,
    For what avails this eager pace?
    I stand amid the eternal ways,
    And what is mine shall know my face.

    Asleep, awake, by night or day,
    The friends I seek are seeking me;
    No wind can drive my bark astray,
    Nor change the tide of destiny.

    What matter if I stand alone?
    I wait with joy the coming years;
    My heart shall reap where it hath sown,
    And garner up its fruit of tears.

    The waters know their own and draw
    The brook that springs in yonder height;
    So flows the good with equal law
    Unto the soul of pure delight.

    The stars come nightly to the sky;
    The tidal wave unto the sea;
    Nor time, nor space, nor deep, nor high,
    Can keep my own away from me. "...
    .. इन कविता को आपसे परिचय करने का मकसद बस एक बढ़िया कविता आपतक पहुचना है... एक सुंदर कविता की तुलना एक सुन्दर कविता से होनी ही चाहिए ताकि पता लग सके की मानवीय संवेदना किसी काल खंड या भौगोलिक परिस्थितियों का दास नहीं होती...

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  11. सुन्दर कविता...
    नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें !

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  12. माँ दुर्गा आपकी सभी मंगल कामनाएं पूर्ण करें

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  13. अवलंबन की कड़ियाँ लम्बी
    दिन दूनी बढती जाएँ
    प्रतीक्षा जितनी भी दम्भी
    आस में उम्र गुजर जाए .
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ,बधाई

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