Wednesday, April 6, 2011

मेरे पथ





जननी जनक हुए विव्हल 
आँगन में गूंजी किलकारी 
माँ की ममता हुई विकल 
सुख की भर दी पिचकारी 

कच्ची मिटटी से गढ़ दी 
एक सलोनी मूरत सी 
आशाओं की गठरी रख दी 
दिखती सूरत मेरी सी 

रोती यदि वे रो देते 
मैं हंसती वो खुश होते 
जरा मलिनता मुख आते   
वे अपना आपा  खोते 

देख मुझे आँखें भरते 
आह मेरी सब हर लेते 
स्वप्न सभी मुझमें तिरते 
साहस और संबल देते 

पंखों ने आज उड़ान भरी 
सपनो ने गति पाई है 
उम्मीदों को उनकी परी
सम्मुख लेकर आई है 

मेरे पथ मुझे राह दिखा 
चिंता सब  हर लूं उनकी 
विधना का हो कोई लिखा 
पुष्प सजाऊँ चाह में उनकी . 

11 comments:

  1. पंखों ने आज उड़ान भरी
    सपनो ने गति पाई है
    उम्मीदों को उनकी परी
    सम्मुख लेकर आई है
    khoobsurat bhaw

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  2. खों ने आज उड़ान भरी
    सपनो ने गति पाई है
    उम्मीदों को उनकी परी
    सम्मुख लेकर आई है
    bahut hi sundar rachna man ko chhoo gayi .

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  3. बहुत दिनो बाद एक सुन्दर कविता पढ़ने को मिली!
    आपका आभार इसे पढ़वाने के लिए!

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  4. ----कच्ची मिटटी से गढ़ दी
    एक सलोनी मूरत सी
    आशाओं की गठरी रख दी
    दिखती सूरत मेरी सी ------aap ki kavita ko pahli baar pdha hai.rachna ki kai ek line sundar hai.bdhai ho.sampark ke liy abhaar.

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  5. सुन्दर अभिव्यक्ति इस विषय में।

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  6. रोती यदि वे रो देते
    मैं हंसती वो खुश होते
    जरा मलिनता मुख आते
    वे अपना आपा खोते
    संवेदनशील रचना , आत्मीयता से भरी अछि लगी, बधाई

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  7. मेरे पथ मुझे राह दिखा
    चिंता सब हर लूं उनकी
    विधना का हो कोई लिखा
    पुष्प सजाऊँ चाह में उनकी .

    bahut pyari rachna.

    shubhkamnayen

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  8. "मेरे पथ मुझे राह दिखा
    चिंता सब हर लूं उनकी
    विधना का हो कोई लिखा
    पुष्प सजाऊँ चाह में उनकी . "
    .. समर्पण से भरी पंक्तियाँ . बहुत सुन्दर !

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  9. जनक जननी ने सब किया ,सहा जिसके लिए , अब उन्हें सबकुछ देने की इच्छा उस अपने की ..
    सुन्दर सोच ...
    प्यारी कविता !

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  10. सुन्दर अभिव्यक्ति!

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