Friday, April 8, 2011

नूतन




सब ओर छाया 
नवीन उल्लास 
ऋतुराज ने किया 
कोई परिहास 

आम में मंजर
कटहल में फूल
धरा चाहे बंजर 
हरीतिमा रही झूल
पायल की रुनझुन
गोरी के पाँव
गाये गीत गुनगुन 
पीपल की  छाँव  

धीमे सुर में
कोयल गाती  
मीठे स्वर में 
ताप हर जाती 

नई उमंग 
प्रीत है नई 
मन में तरंग 
आशाएं कई 

ह्रदय हुलसी 
सपनों की लड़ी
आँगन तुलसी 
जोडती कड़ी 

पतझड़ हारा 
आई नव कोपल 
परिवेश सारा 
नूतन कोमल . 

16 comments:

  1. achi rachna hai nature ke liye

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  2. बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  3. रचना में प्रतीकों का बहुत सुन्दर प्रयोग किया है आपने!
    कविता की ध्वन्यात्मकता देखते ही बनती है!
    सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए आभार!

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  4. प्राकृतिक बिम्बों का अद्भुत प्रयोग!
    सुंदर रचना।

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  5. नई उमंग
    प्रीत है नई
    मन में तरंग
    आशाएं कई
    kafi achhi rachna

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  6. प्रकृति के माध्यम से आशा का संचार करती कविता !

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  7. आयी नव कोपलें, स्वागत करें।

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  8. पतझड़ हारा
    आई नव कोपल
    परिवेश सारा
    नूतन कोमल .

    prakriti avum jeevan mein samanjasya sthapit karti rachna. achha laga padhna

    shubhkamnayen

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  9. बहुत सुन्दर प्रकृति वर्णन

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  10. Man ek komal ehsaas se bhar gaya!

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  11. अच्छी अभिब्यक्ति

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  12. रामपति जी अच्छी रचना है बधाई

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  13. प्राकृतिक बिम्बों का अद्भुत प्रयोग!
    सुंदर रचना।

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  14. बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...

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  15. नूतन नाम से आकर्षित हो कर इस रचना को पढ़ा ... बहुत ही सुन्दर प्रकृति की सुंदरता और नूतन कोमलता का वर्णन ..अद्भुत ..

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