Thursday, April 28, 2011

दर्द


 
शीघ्र आने को कह गए 
अब तक लौट न आये तुम 
वसंत अनगिन बीत गए 
कब तक राह निहारें हम 

कोयल कूक कूक थकती 
पपीहा भी हो गया मौन 
काक न लाया कोई पाती 
               गौरैया पूछे आएगा कौन                

नाम तुम्हारा रटे सुगना 
हर आहट पर आँखें खोल 
खनखन से दूर हुआ कंगना 
चुक गए हैं उसके बोल  

विरहणी की है पीर भली 
है कोई तो संग निभाने को 
बरसे सावन या झडे पतझड़ 
ये सब हैं दुःख बतियाने को 

ममता की मूरत को देखो 
है पुत्र विरह में बौराई
ह्रदय कसकता है उसका 
वह जाने प्रेम की गहराई  

मुझसे ज्यादा दीन दुखी 
दर्द मेरा बौना उससे 
घर की दीवारें खोज रहीं 
उज्जवल हर कोना उससे    

दीपक हो जिस जीवन का 
उनकी तो सुधि ले लेना 
रीतापन हरना आँचल का
नैनों में उजास भरना  .  
 

13 comments:

  1. अन्तरमन के भाव मुखारित हुए।
    वाह... कितनी खूबसूरती से जज्बातोँ को उकेरा आपने उत्कृष्ट, भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत आभार।

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  2. Judai ke pal bitaana aasaan nahi hota ... kaash ye din kabhi n aayen ... bhaavuk rachna ...

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  3. ........लाजवाब !!! बहुत सुंदर लिखती हैं आप !!!

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  4. बहुत बेहतरीन रचना....

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  5. मुझसे ज्यादा दीन दुखी
    दर्द मेरा बौना उससे
    घर की दीवारें खोज रहीं
    उज्जवल हर कोना उससे
    --
    बहुत बढ़िया रचना लिखी है आपने!

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  6. वाह क्या बात है इंतजार की हद है यह सुन्दर और प्रशंसनीय अभिव्यक्ति , बधाई ...

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  7. कोयल कूक कूक थकती
    पपीहा भी हो गया मौन
    काक न लाया कोई पाती
    गोरैया पूछे आएगा कौन
    बहुत ही अच्छी रचना। एक दम से मन को छू लेने वाली। प्रवाह, बिम्प-प्रतीक प्रयोग, लय, भाव, सब दृष्टि से उत्तम।

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  8. Nihayat sundar rachana! Aapkee behtareen rachanaon me se ek!

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  9. Sach! Reetapan kitna khal sakta hai,ye bahut khoobsoortee se bayaan kiya hai aapne! Wah!

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  10. सुन्दर लेखन, गहरे भाव. बधाई ............. !

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  11. मुझसे ज्यादा दीन दुखी
    दर्द मेरा बौना उससे
    घर की दीवारें खोज रहीं
    उज्जवल हर कोना उससे

    ati sundar. apne dard hamesha dusre ke dard se chota lagta hai.

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  12. virah ki peer sunder shabdon me abhivyakt hui hai...

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  13. गहरे भावों से भरी रचना।

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