हम हो गए
पत्थर
तो क्या होगा
गढ़ उठेगी
एक मूरत
बोलती सी
तो क्या होगा
बज उठेगा
उसमें गीत
कराहता सा
तो क्या होगा
उन आँखों में
न भरना प्रीत
बहे आंसुओं सा
तो क्या होगा
उन हाथों में
न देना मीत
रहा खाली सा
तो क्या होगा
उन होठों में
न गढ़ना कमल
चाहे खिला सा
तो क्या होगा
एक पत्थर में
न फूंकना प्राण
उठे जीवन सा
तो क्या होगा
kuchh nahi hoga par fir bhi ham pathar na bane wahi behtar hai:)
ReplyDeleteएक पत्थर में
ReplyDeleteन फूंकना प्राण
उठे जीवन सा
तो क्या होगा
-उम्दा विचार...............
बेहतरीन,
ReplyDeleteकाव्य प्रवाह,
बहे रस सा।
एक पत्थर में
ReplyDeleteन फूंकना प्राण
उठे जीवन सा
तो क्या होगा
Bahut,bahut khoobsoorat rachana!
एक पत्थर में
ReplyDeleteन फूंकना प्राण
उठे जीवन सा
तो क्या होगा
.........हर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्यक्ति
......श्रावण मास की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteजय भोलेनाथ
बहुत सु्न्दर भाव्।
ReplyDeleteएक पत्थर में
ReplyDeleteन फूंकना प्राण
उठे जीवन सा
तो क्या होगा
mast hai madam
वाह...बहुत सुन्दर रचना...भाव और शब्द...दोनों अद्भुत बुने हैं आपने...बधाई
ReplyDeleteनीरज
एक पत्थर में
ReplyDeleteन फूंकना प्राण
उठे जीवन सा
तो क्या होगा ...
बहुत लाजवाब ख्याल है ... अगर पत्थरों में जान आ जाए तो क्या होगा ...