तपन को बढाती
बरस बरस के
लोचन भर जाती
कोकिल के पंख भीगे
कैसे भला उड़ पाती
उलझे हैं मन के धागे
कैसे उन्हें बुन पाती
क्षितिज तक निहारे
घन भर भर छाये
किसको वह पुकारे
जो इन्हें उड़ा ले जाए
इन कोमल बूंदों ने
मन को हुल्साया
टप टप के गान ने
स्पंदन भी ठहराया
चली जाओगी बदरी
बरस के तुम निकल
आंसुओं की गठरी
लिए बिरहन रहे विकल
जग सारा जुडाया
मुझमें क्यों दाह भरी
पुरवा ने द्वेष उड़ाया
मुझमें है आह भरी
रिमझिम सी बूँदें
दरिया उफान लायेंगी
नाम तुम्हारा गूंजें
स्मृति बहा न पाएंगी .
यादें कहाँ बिसराई जाती हैं ? सावन की फुहारें यादों को और तारो ताज़ा कर देती हैं ... सुन्दर रचना
ReplyDeleteसावन की फुहारों में यादें घुल घुल कर निकल आती हैं।
ReplyDeleteरिमझिम सी बूँदें
ReplyDeleteदरिया उफान लायेंगी
नाम तुम्हारा गूंजें
स्मृति बहा न पाएंगी . ati sundar ........
vaah ..........bahut hi sundar yadon ka chitran kiya hai.
ReplyDeleteसावन की फुहारे और आपकी रचना!
ReplyDeleteदोनों को महसूस कर आनन्द आ गया!
कोकिल के पंख भीगे
ReplyDeleteकैसे भला उड़ पाती
उलझे हैं मन के धागे
कैसे उन्हें बुन पाती
बहुत अच्छी रचना क्या कहने ...
रिमझिम सी बूँदें
ReplyDeleteदरिया उफान लायेंगी
नाम तुम्हारा गूंजें
स्मृति बहा न पाएंगी .
सुंदर भाव लिए अच्छी प्रस्तुति.
सावन की फुहारों का मनमोहक चित्रण ....बहुत सुंदर.....उम्दा अभिव्यक्ति...
ReplyDeletebahut hi sundar kavita...
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