Monday, July 18, 2011

एक पत्थर









पाषाण नगरी में 
हम हो गए 
पत्थर 
तो क्या होगा 

गढ़ उठेगी 
एक मूरत 
बोलती सी 
तो क्या होगा 

बज उठेगा 
उसमें गीत 
कराहता सा 
तो क्या होगा 

उन आँखों में 
न भरना प्रीत 
बहे आंसुओं सा
तो क्या होगा 

उन हाथों में 
न देना मीत 
रहा खाली सा 
तो क्या होगा 

उन होठों में 
न गढ़ना कमल
चाहे खिला सा 
तो क्या होगा 

एक पत्थर में 
न फूंकना प्राण
उठे जीवन सा 
तो क्या होगा  

10 comments:

  1. kuchh nahi hoga par fir bhi ham pathar na bane wahi behtar hai:)

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  2. एक पत्थर में
    न फूंकना प्राण
    उठे जीवन सा
    तो क्या होगा

    -उम्दा विचार...............

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  3. बेहतरीन,
    काव्य प्रवाह,
    बहे रस सा।

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  4. एक पत्थर में
    न फूंकना प्राण
    उठे जीवन सा
    तो क्या होगा
    Bahut,bahut khoobsoorat rachana!

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  5. एक पत्थर में
    न फूंकना प्राण
    उठे जीवन सा
    तो क्या होगा
    .........हर शब्‍द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्‍यक्ति

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  6. ......श्रावण मास की हार्दिक शुभकामनायें !
    जय भोलेनाथ

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  7. बहुत सु्न्दर भाव्।

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  8. एक पत्थर में
    न फूंकना प्राण
    उठे जीवन सा
    तो क्या होगा

    mast hai madam

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  9. वाह...बहुत सुन्दर रचना...भाव और शब्द...दोनों अद्भुत बुने हैं आपने...बधाई

    नीरज

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  10. एक पत्थर में
    न फूंकना प्राण
    उठे जीवन सा
    तो क्या होगा ...

    बहुत लाजवाब ख्याल है ... अगर पत्थरों में जान आ जाए तो क्या होगा ...

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